जिस लूम के भरोसे चलती थी घर की गाड़ी , आज वह बुनकर मजबूरी में कर रहे हैं मजदूरी
अमरजीत सिंह भागलपुर संवाददाता
एंकर व्यू: — जिस नगरी को सिल्क सिटी के नाम से जाने जाते हैं, रेशमी नगरी के नाम से विख्यात है भागलपुर,। वह आज यहां मजबूरी में सिल्क कारोबार करने वाले बुनकर लोग मजदूर बनकर मजदूर बन गए है। बात हम भागलपुर के नाथनगर प्रखंड चंपानगर क्षेत्र की कर रहे हैं। लूम चलाने वाले बुनकर च लोगों ने अपनी पीड़ा हमारे संवाददाता को सुना रहे थे तो उनकी आंखें भर आती थी और उनकी मजबूरी सब कुछ बयां करते दिख रही थी। लूम चलाने वाले बुनकर अपने बातों को सुनाते सुनाते उनके आंखों में नमी भर आती थी और उनके आंसू रोके नहीं रुकती थी साथ ही उन लोगों ने सरकार से अपने परिवार वालों के लिए दो वक्त की रोटी के लिए गुहार भी लगाई, उन लोगों का कहना है सरकार हम लोगों पर विशेष ध्यान दें ।हम सभी बुनकर पर ही टिके हैं, अगर बुनकर नहीं चले तो हम कहां जाएंगे।सरकार हमारी कोई मदद नहीं करेगी तो हम परिवार कैसे चलाएंगे हम सभी भूखे मर जाएंगे।
आखिरकार क्यों है सिल्क सिटी के बुनकर के लोग इतने भाबुक –
आज बुनकर का काम करने वाले 90% बुनकर लूम को बेचने को मजबूर हो गए हैं और दूसरी बात यह है कि यहां मजदूरी कर अपने दो वक्त की रोटी किसी तरह पुराना पड़ रहा है जिससे की आंखों में आंसू और दिन भर समस्या से परेशान रहने को भी बुनकर मजबूर भी दिख रहें है ।90% लोग लूम को बंद कर दिए हैं बताया यह भी जा रहा है कि बुनकरों को आर्डर नहीं आने से दयनीय स्थिति भी बहुत ही खराब हो चुकी है ,
क्यों हुई यह स्थिति –
बुनकर प्रतिनिधियों ने बताया कि यहां के कारोबारअमेरिका ,रूस ,ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा ,श्रीलंका अधिक देशों में फैला था लेकिन वैश्विक महामारी कोरोना के प्रकोप से लगभग बंद हो गया है। देश में भी केरल ,असम, चेन्नई, कोलकाता ,मुंबई व दिल्ली समेत अन्य इलाकों में सप्लाई होती थी यहां भी स्थिति सामान्य नहीं हो पाई है।
क्यू बुनकर व्यवसाई अब कम मजदूरी पर भी हो जाते हैं तैयार ?
जिले के अलग-अलग क्षेत्रों से बुनकर कामगारों को पहले घर बैठे काम मिलता था अब गली गली भटक रहे हैं पहले से आधी मजदूरी भी मिल जाती
है तो किस्मत की बात मानते हैं ..
सुनिए दर्द बुनकर व्यवसाईयों का
यहां के बुनकर व्यवसायियों का दर्द भी कम नहीं हैं कहते हैं कि घर चलाने के लिए कर्ज लेना पड़ा घर की छत जर्जर हुई तो इतने पैसे नहीं थे कि उसे बनवा पाए नीतिजा घर की छत गिर गई जिसके सहारे कमाते थे वह भी टूटकर क्षत-विक्षत हो गया, डेढ़ लाख का लूम था। कई लूम व्यवसायियों का कहना हुआ सरकार हम लोगों पर कोई ध्यान नहीं दे रही बिजली का बिल भी बहुत गिर गया है आखिर कैसे चुकता करें।चारों तरफ से आफत है कुछ समझ नहीं आता लोग कर्ज देने से भी इनकार करने लगे है अब करे तो करे क्या
30,000 लूम की थमी रफ्तार –
बुनकर बहुल क्षेत्र में अभी 90 फ़ीसदी लूम बंद पड़े हैं ।10 फ़ीसदी लोग इसलिए चला रहे है ताकि उनके बचे हुए धागे खराब नहीं हो जाए ।अब वह कपड़े लागत मूल्य से भी कम पर बेचने को विवश है। लूम बंद होने से एक लाख बुनकर परिवार बेरोजगार हो गए हैं और दिल पर पत्थर रख बेच दिया लूम ।कभी थे मालिक अब मजबूरी में बन गए मजदूर ।