शनिवार को महान नायक जबरा पहाड़िया अर्थात अमर शहीद तिलकामांझी का जन्मदिन हरिओ गांव के अंबेडकर चौक पर मनाया गया ।।

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शनिवार को महान नायक जबरा पहाड़िया अर्थात अमर शहीद तिलकामांझी का जन्मदिन हरिओ गांव के अंबेडकर चौक पर मनाया गया ।।


इस मौके पर मौजूद सामाजिक न्याय आंदोलन,बिहार के गौतम कुमार प्रीतम ने कहा तिलका मांझी के जीवन संघर्ष को जानना-समझना भारतीय समाज की गंभीर जरूरत है। जिस साम्राज्यवाद और मनुवाद के खिलाफ संघर्ष करते हुए शहादत दी थी आज फिर से भारत समाज वित्तीय पूँजीवाद और मनुवाद के गिरफ्त में आ चुका है। गौतम ने कहा कि तिलका ने हमेशा से ही अपने जंगलो को लुटते और अपने लोगों पर अत्याचार होते हुए गरीब आदिवासियों की भूमि, खेती, जंगलों को अंग्रेज़ी शासकों आजाद कराने की मजबूत लड़ाई लड़ी।


आज जिस कदर कॉरपोरेट व मनुवादी-सांप्रदायिक भाजपा-आरएसएस ने केंद्रीय सत्ता के माध्यम से फिर जल-जंगल-जमीन का लूट-खसोट कर एक-दो काॅरपोरेट के हवाले कर दिया है। इसलिए आज बहुजनों को जरूरत है कि तिलका मांझी की विरासत को आगे बढ़ाते हुए संघर्ष को तेज करें और 12 मार्च 2023 को रविन्द्र भवन, पटना आयोजित बहुजन संसद पहुंचे।

बहुजन स्टूडेन्ट्स यूनियन,बिहार के गौरव पासवान व दीपक दीवान ने कहा आदिवासियों और पर्वतीय सरदारों की लड़ाई अक्सर अंग्रेज़ी सत्ता से रहती थी, लेकिन पर्वतीय जमींदार वर्ग अंग्रेज़ी सत्ता का साथ देता था।
धीरे-धीरे इसके विरुद्ध तिलका मांझी ने आवाज़ उठाया। उन्होंने अन्याय और गुलामी के खिलाफ़ जंग छेड़ी। तिलका मांझी राष्ट्रीय भावना जगाने के लिए भागलपुर में स्थानीय लोगों को सभाओं में संबोधित करते थे।

मिथिलेश सिंह कुशवाहा और नसीब रविदास ने कहा जाति और धर्म से ऊपर उठकर लोगों को देश के लिए एकजुट होने के लिए शहीद तिलका मांझी आमजन को प्रेरित करते थे। साल 1770 में जब भीषण अकाल पड़ा, तो तिलका ने अंग्रेज़ी शासन का खज़ाना लूटकर आम गरीब लोगों में बाँट दिया। उनके इन नेक कार्यों और विद्रोह की ज्वाला से और भी आदिवासी उनसे जुड़ गये। इसी के साथ शुरू हुआ उनका ‘संथाल हुल’ यानी कि आदिवासियों का विद्रोह। उन्होंने अंग्रेज़ों और उनके चापलूस सामंतो पर लगातार हमले किए और हर बार तिलका मांझी की जीत हुई। ये कभी भी समर्पण नहीं किया, न कभी झुके और न ही डरे।

बीरेन्द्र सिंह व इंजिनीयर समरजीत दास ने कहा उन्होंने स्थानीय सूदखोर ज़मींदारों एवं अंग्रेज़ी शासकों को जीते जी कभी चैन की नींद सोने नहीं दिया। अंग्रेज़ी सेना ने एड़ी चोटी का जोर लगा लिया, लेकिन वे तिलका को नहीं पकड़ पाए। ब्रिटिश हुक्मरानों ने उनके अपने ऐसे में अंग्रेज़ों ने पहाड़ों की घेराबंदी करके उन तक पहुंचने वाली तमाम सहायता रोक दी।
इसकी वजह से तिलका मांझी को अन्न और पानी के अभाव में पहाड़ों से निकल कर लड़ना पड़ा और एक दिन वह पकड़े गए। यह कहा जाता है की तिलका मांझी को चार घोड़ों से घसीट कर भागलपुर ले जाया गया। 13 जनवरी 1785 को उन्हें एक बरगद के पेड़ से लटकाकर फांसी दे दी गई थी।

कार्यक्रम की अध्यक्षता मान्यवर नोटिस पासवान ने किया संचालन गौरव पासवान व दीपक दीवान ने किया।
वक्ताओं में सुभाष पासवान, दीपक साह, रणधीर पासवान थे।
मौके पर संजय पासवान, मजनू कुमार, अंकित कुमार, भवेश, करण, अजीत कुमार सहित कई एक मौजूद थे।

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