रवींद्रनाथ ठाकुर।नवगछिया- 13 दिनों तक चलने वाला मधुश्रावणी व्रत का बुधवार को समाप्त हो गया। मधुश्रावणी मिथिलांचल का प्रमुख लोक पर्व है। सुहाग की सुरक्षा एवं सुखमय दांपत्य जीवन के लिए नवविवाहिताएं 13 दिनों तक पूरे विधि-विधान से पूजा करती हैं। खासबात ये है कि पूजा पंडित द्वारा नहीं बल्कि घर की बुजुर्ग महिला कराती हैं। शिव-पार्वती के साथ नागदेव की कथा सुनाती हैं।
नवविवाहिता सोनी झा बताती हैं कि मधुश्रावणी पर्व मिथिला की नव विवाहिताओं के होती है। उनके लिए ये एक प्रकार से साधना है। नवविवाहिता लगातार 13 दिनों तक चलने वाले इस व्रत में सात्विक जीवन व्यतीत करती है। बिना नमक का खाना खाती है। जमीन पर सोती है। झाड़ू नहीं छूती है। नवविवाहिताएं अपनी सखी-सहेलियों के साथ बगीचे में फूल तोड़ने जाती हैं। पूजा का समापन टेमी (रूई की बाती) दागने से समाप्त होती है। ससुराल से आये रूई की बाती से नवविवाहिता के पांव पर टेमी दागी जाती हैं। ये रस्म एक प्रकार की अग्निपरीक्षा के समान होती है। इस साधना में प्रतिदिन सुबह में स्नान ध्यान कर के नवविवाहिता बिशहरी यानि और मां गौरी की पूजा अर्चना करती है।
फिर गीत के साथ कथा सुनती है। इस पूरे पर्व के दौरान 15 दिनों की अलग-अलग कथाएं हैं। इसमें भाग लेने के लिए घर के साथ आस पड़ोस की महिलाएं भी आती है। उसके बाद शाम को अपनी सखी सहेलियों के साथ फूल लोढ़ने जाती है। इस बासी फूल से ही मां गौरी की पूजा होती है। 15 दिनों तक यही क्रिया चलती रहती है। इसमें विवाहिता के साथ-साथ पूरे परिवार का कपड़ा, मिठाई, खाजा, लड्डू, केला, दही आदि ससुराल से भेजा जाता है। ये सामान मधुश्रावणी के दिन सभी के बीच बांटा जाता है और एहबाती को खिलाया जाता है।