दो साल बाद भी मोदी ने नहीं दिया नीतीश को ‘भाव’, एक मंत्री पद से ही होना पड़ा संतुष्ट ।। InquilabIndia

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पीएम मोदी की अगुवाई वाली सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले मंत्रिपरिषद विस्तार में मंत्री बनने वाले कुल 43 नेताओं में 32 ऐसे चेहरे हैं, जो पहली बार केंद्रीय मंत्री की जिम्मेदारी निभाएंगे. मंत्रिमंडल विस्तार में एनडीए के घटक दल जेडीयू के एक मात्र नेता रामचंद्र प्रसाद सिंह को जगह मिली है. पढ़ें पूरी खबर..

पटना: पीएम मोदी ने लगभग 2 साल पूरे होने पर मंत्रिमंडल का विस्तार ( Union Cabinet Expansion ) किया है. कुल 43 मंत्रियों ने शपथ ली. बिहार से जेडीयू के आरसीपी सिंह ( RCP Singh ) और एलजेपी के पशुपति पारस ( Pashupati Paras ) ने शपथ ली. जबकि आरके सिंह ( RK Singh ) को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है. इन सब में चौंकाने वाली बात यह है कि 2 साल पहले एक मंत्री पद का ऑफर ठुकराने वाली जेडीयू इस बार भी एक ही पद से संतुष्ट होना पड़ा.

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या पीएम मोदी ( PM Narendra Modi ) नीतीश कुमार ( Nitish Kumar ) या उनकी पार्टी जेडीयू को भाव देने के मूड में नहीं हैं. केंद्रीय कैबिनेट में जेडीयू के एक मात्र नेता के शामिल होने से साफ हो चुका है कि पीएम मोदी केन्द्र की सियासत में नीतीश और उनकी पार्टी को ज्यादा तवज्जो नहीं देने वाले हैं और अपनी शर्तों पर ही नीतीश से डील करेंगे.

दरअसल, साल 2019 में जेडीयू के एक मंत्री पद का ऑफर दिया गया था. लेकिन तत्कालीन जेडीयू अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कहना था कि बिहार में दोनों दल 17-17 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे, जिसमें जेडीयू के 16 और बीजेपी को 17 सीटें आईं थी. वहीं एनडीए के अन्य घटक एलजेपी 6 सीटें जीती थी.

ऐसे में नीतीश कुमार का कहना था कि जब सीटों का बंटवारा में 50-50 फॉर्म्यूले हुआ है, तो सहभागिता भी 50-50 फॉर्म्यूले पर ही होगी. लेकिन बीजेपी की ओर से नीतीश कुमार को एक मंत्री पद का ऑफर दिया गया, जिसे नीतीश कुमार ने ठुकरा दिया और ऐलान किया कि जेडीयू सरकार में शामिल नहीं होगी.

दरअसल, साल 2019 और 2021 में बहुत अंतर है. 2019 में नीतीश कुमार की पार्टी बीजेपी से एक सीट पीछे थी, लेकिन 2020 विधानसभा चुनाव में बीजेपी 74 सीटों के साथ बिहार में दूसरे नंबर की पार्टी है. वहीं, जेडीयू 43 सीटों के साथ तीसरे नंबर की पार्टी है. इसके बावजूद बीजेपी ने नीतीश की बिहार में सीएम बनाया. यह बात सार्वजनिक तौर पर कई बार नीतीश कुमार भी कह चुके हैं कि वे सीएम नहीं बनना चाहते थे लेकिन बीजेपी के लोगों मुझे मुख्यमंत्री बना दिया.

तो क्या मान लिया जाए कि सीएम की कुर्सी के कारण नीतीश कुमार को 2 साल पुरानी डील पर राजी होना पड़ा, या नीतीश जान चुके हैं कुछ भी हो जाए केन्द्र की राजनीति में इस वक्त वे पीएम मोदी को टक्कर नहीं दे सकते, जो मिल रहा है उसी से संतुष्ट होना पड़ेगा ?

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