यूक्रेन में इंडियंस की मजबूरी:तिरंगा लेकर रूस बॉर्डर की तरफ निकले सूमी में फंसे स्टूडेंट्स; दिया आखिरी मैसेज- हमें कुछ हुआ तो एम्बेसी जिम्मेदार।।।

यूक्रेन में इंडियंस की मजबूरी:तिरंगा लेकर रूस बॉर्डर की तरफ निकले सूमी में फंसे स्टूडेंट्स; दिया आखिरी मैसेज- हमें कुछ हुआ तो एम्बेसी जिम्मेदार।।।

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यूक्रेन में इंडियंस की मजबूरी:तिरंगा लेकर रूस बॉर्डर की तरफ निकले सूमी में फंसे स्टूडेंट्स; दिया आखिरी मैसेज- हमें कुछ हुआ तो एम्बेसी जिम्मेदार।।।

रूस और यूक्रेन की जंग के बीच 10 दिन बाद सूमी शहर में फंसे भारतीय मेडिकल स्टूडेंट्स भी अब एक नई जंग पर निकल पड़े हैं। स्टूडेंट्स इंडियन एम्बेसी की नाकामी को जिम्मेदार बताते हुए खुद ही 45 किलोमीटर दूर रशियन बॉर्डर की तरफ निकल पड़े। स्टूडेंट्स ने निकलने से पहले दो वीडियो भी जारी किए और कहा कि ये उनका आखिरी मैसेज है। रास्ते में अगर उनकी जान को खतरा होता है तो सरकार और एम्बेसी जिम्मेदार होगी।

उधर, एम्बेसी अब भी छात्रों को धैर्य बनाए रखने की अपील कर रही है। वहीं, विदेश मंत्रालय ने कहा कि हमने सभी भारतीय छात्रों को सतर्क और सुरक्षित रहने के लिए कहा है। छात्र किसी सुरक्षित जगह पर रहें और अनावश्यक जोखिम ना उठाएं। विदेश मंत्रालय और हमारे दूतावास छात्रों से लगातार संपर्क में हैं। स्टूडेंट्स के हालात को जानने से पहले आप इस पोल में हिस्सा लेकर अपनी राय दे सकते हैं।

खाना खत्म, बिजली नहीं, कैसे करें गुजारा

ये वीडियो जारी करनेवाले स्टूडेंट सूमी स्टेट मेडिकल यूनिवर्सिटी के अलग-अलग ईयर के हैं। इन्होंने जंग शुरू होने के बाद से ही यहां बंकरों में पनाह ले रखी थी। उन्होंने खाने-पीने का जो कुछ भी सामान इकट्‌ठा कर रखा था, वह खत्म होने को है।

एक टाइम खाकर किसी तरह गुजारा कर रहे इन स्टूडेंट्स का सब्र तब जवाब दे गया, जब यहां के पावर प्लांट पर रूस ने बमबारी की और बिजली कट गई। इसकी वजह से पानी की भी दिक्कत होने लगी, जिसके बाद बर्फ पिघलाकर पानी का इंतजाम करना पड़ा। इससे जुड़े वीडियो भी सोशल मीडिया पर शेयर हुए।

स्टूडेंट्स का कहना है कि बिजली न होने से उनके मोबाइल भी चार्ज नहीं हो पा रहे हैं और अब उनके अपने ही परिवारों से पूरी तरह कट जाने का खतरा पैदा हो गया है।

सूमी में पानी की ऐसी कमी हो गई है कि छात्रों को बर्फ पिघलाकर पानी का इंतजाम करना पड़ा।
सूमी में पानी की ऐसी कमी हो गई है कि छात्रों को बर्फ पिघलाकर पानी का इंतजाम करना पड़ा।
‘ऑपरेशन गंगा पूरी तरह फ्लॉप माना जाएगा’

वीडियो में एक स्टूडेंट ने कहा, ‘हम सूमी स्टेट यूनिवर्सिटी के छात्र हैं। आज युद्ध का 10वां दिन है। हमें जानकारी मिली है कि रूस ने यूक्रेन के मारियुपोल और वोलनोवखा में सीजफायर का ऐलान किया है। मारियुपोल सूमी से 600 किलोमीटर दूर है।

सुबह से यहां लगातार गोलीबारी, बमबारी और गलियों में लड़ाई की आवाजें आ रही हैं। हम डरे हुए हैं। हमने बहुत इंतजार किया, लेकिन अब और नहीं। हम अपनी जिंदगी रिस्क में डाल रहे हैं। हम बॉर्डर की तरफ जा रहे हैं।

अगर हमें कुछ होता है तो इसकी पूरी जिम्मेदारी भारत सरकार और यूक्रेन में भारतीय एम्बेसी की होगी। अगर हममें से किसी को भी कोई नुकसान पहुंचता है तो ऑपरेशन गंगा को पूरी तरफ से फेल माना जाएगा।’

वीडियो में एक अन्य छात्रा कहती है, ‘स्टेट यूनिवर्सिटी के छात्रों का ये आखिरी वीडियो है। हम अपनी जिंदगी दांव पर लगा रहे हैं और बॉर्डर की तरफ जा रहे हैं। आप हमारे लिए प्रार्थना करें। सरकार से गुजारिश है कि हमें यहां से निकलने में मदद करे।’

सूमी में कई दिनों तक मेट्रो स्टेशनों में भी पनाह लिए रहे स्टूडेंट्स और शहर के लोग।
सूमी में कई दिनों तक मेट्रो स्टेशनों में भी पनाह लिए रहे स्टूडेंट्स और शहर के लोग।
स्टूडेंट्स के कदम से परिवारों में कोहराम

बताया जाता है कि वीडियो जारी करने के बाद स्टूडेंट्स का ये दल एक बस में सवार होकर रूस बॉर्डर की तरफ रवाना हो गया। इनके परिवारों का कहना है कि इन स्टूडेंट्स से कोई संपर्क नहीं हो पा रहा। पैरेंट्स ने सरकार से गुहार की है कि किसी तरह इन स्टूडेंट्स का पता लगाया जाए। अधिकारियों को मौके पर भेजा जाए या रूस के अधिकारियों से इनके लिए बात की जाए।

अब बात चेकोस्लोवाकिया बॉर्डर पहुंचे स्टूडेंट्स की

हरियाणा के कैथल के रहने वाले कीव मेडिकल यूनिवर्सिटी के चौथे साल के छात्र प्रणव सिंह ने बताया कि वह यूक्रेन की राजधानी कीव से बॉर्डर पार करके चेकोस्लोवाकिया पहुंचे। बॉर्डर तक पहुंचने में उन्हें किसी तरह की कोई मदद नहीं मिली। चेकोस्लोवाकिया बॉर्डर क्रॉस करने के बाद इंडियन एम्बेसी के लोग मिले।

चेकोस्लोवाकिया बॉर्डर पहुंचे मेडिकल स्टूडेंट्स ने एयरपोर्ट पर ये सेल्फी ली और अपने करीबियों को भेजी।
चेकोस्लोवाकिया बॉर्डर पहुंचे मेडिकल स्टूडेंट्स ने एयरपोर्ट पर ये सेल्फी ली और अपने करीबियों को भेजी।
प्रणव ने बताया कि यूक्रेन का मंजर दिल दहलाने वाला है। जगह-जगह फौजियों की लाशें पड़ी हैं। मेरे सामने कई जगह धमाके हुए। जिस ट्रेन से हमें बॉर्डर तक जाना था, उसमें चढ़ना आसान नहीं था। लोग धक्का देकर हमें गिरा रहे थे। ज्यादातर यूक्रेन के लोगों को ही ट्रेन में चढ़ने दिया जा रहा था। ट्रेनें ओवरलोड होने की वजह से पटरियों को भी खतरा था। इसे ध्यान में रखते हुए ट्रेनें धीमी रफ्तार से चलाई जा रही थीं। चार घंटे का सफर 20 घंटे में पूरा हुआ।

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