Central school – 85 केंद्रीय विद्यालयों की घोषणा, बिहार को मिला ‘शून्य’: शिक्षा का अपमान या राजनीतिक भेदभाव?

Central school

Central school –  देशभर में शिक्षा का स्तर सुधारने और सभी राज्यों तक समान अवसर पहुंचाने का सपना दिखाया जाता है। हाल ही में केंद्र सरकार ने 85 नए केंद्रीय विद्यालयों ( Central school ) की घोषणा की। ये विद्यालय भारतीय शिक्षा प्रणाली की रीढ़ माने जाते हैं, लेकिन इस घोषणा में बिहार के हिस्से में शून्य विद्यालय आना सिर्फ निराशाजनक ही नहीं बल्कि अपमानजनक है।

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बिहार जिसे कभी ज्ञान और शिक्षा का गढ़ माना जाता था, जहां नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालयों ने दुनियाभर को प्रकाश दिखाया, आज उस धरती को ‘शिक्षा-वंचना’ का सामना करना पड़ रहा है। क्या बिहार के बच्चों का सपना सिर्फ मजदूर बनकर दूसरे राज्यों में पलायन करना रह गया है ? क्या उन्हें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का हक नहीं है ?

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राजनीति या वास्तविक जरूरत ?

85 विद्यालयों की सूची  ( Central school ) को देखकर यह सवाल उठता है कि क्या यह योजना जरूरतों के आधार पर बनाई गई या राजनीतिक नफे-नुकसान को ध्यान में रखकर  ? बिहार, जो देश की सबसे बड़ी आबादी वाले राज्यों में से एक है, जहां स्कूल और शिक्षण संस्थानों की भारी कमी है, वहां एक भी विद्यालय आवंटित न होना समझ से परे है।

आंकड़े बोलते हैं : –


बिहार में पहले से ही शिक्षा का हाल बदतर है। केंद्रीय विद्यालय ( Central school )  जैसी संस्थाएं यहां बच्चों को बेहतर शिक्षा और संसाधन प्रदान कर सकती थीं। लेकिन इस ‘शून्य’ ने यह स्पष्ट कर दिया कि बिहार के लिए योजनाएं सिर्फ कागजों तक सीमित हैं।

Central school
                                                                                                              Central school



बिहार का सवाल : –
यह केवल एक घोषणा नहीं बल्कि बिहार के प्रति नीति-निर्माताओं के रवैये का आईना है। बार-बार बिहार को पीछे धकेलने की यह मानसिकता कब बदलेगी  ? बिहार के लोगों को कब यह एहसास होगा कि उन्हें सिर्फ वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है ?

अब वक्त है कि बिहार अपनी आवाज उठाए। शिक्षित बिहार ही मजबूत बिहार बनेगा। केंद्र सरकार ( Central school ) से यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि बिहार के हिस्से में शून्य क्यों आया? जब देश के हर राज्य को समान शिक्षा का अधिकार है, तो बिहार को क्यों नजरअंदाज किया गया?

कटाक्ष : –
शायद सरकार मान चुकी है कि बिहार की जरूरत सिर्फ ‘मजदूरी कार्ड’ है, न कि ‘शिक्षा कार्ड’। लेकिन यह भूल न करें कि इसी बिहार ने देश को सबसे ज्यादा आईएएस और आईपीएस अधिकारी दिए हैं। शायद यही डर बिहार को शिक्षित करने से रोक रहा है। लेकिन बिहार अब चुप नहीं रहेगा। ‘शून्य’ का यह अपमान जवाब मांगेगा।

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