अंगूर खट्टे हैं, “औकात” से बाहर भी: एक सत्य घटना

लेखक: डॉ सत्यप्रकाश आज अपने पास की एक हॉट में जाना हुआ, धर्मपत्नी जी के साथ सुबह सुबह… मेरी दिनचर्या में जो काम सहज नहीं है, उस काम को करने के लिए… जी हां…सब्जी खरीदना है… या यूं कहो कि मेरे लिए खरीदारी एक बहुत बड़ा दायित्व है..जिसे मै आज तक नहीं सीख पाया… अपनी…

डॉक्टर सत्य प्रकाश

लेखक: डॉ सत्यप्रकाश

आज अपने पास की एक हॉट में जाना हुआ, धर्मपत्नी जी के साथ सुबह सुबह… मेरी दिनचर्या में जो काम सहज नहीं है, उस काम को करने के लिए… जी हां…सब्जी खरीदना है… या यूं कहो कि मेरे लिए खरीदारी एक बहुत बड़ा दायित्व है..जिसे मै आज तक नहीं सीख पाया… अपनी मां की तरह ही रह गया… दुनिया का दाम भाव पता नहीं चला… मात्र यही मीट प्रोग्राम है.. जिसका मूल्य स्थापित कर, दुनिया में अपनी कीमत पता कर रहा हूं..

वैसे तो लोग कहते हैं कि मैं बहुत कीमती हूं.. और मेरा वजूद पैसे से नहीं आका जा सकता.. जैसा की सभी का… पर मैं मानता हूं यह दृष्टि दृष्टि का फर्क है… मेरी कीमत उसी की नजरों में ज्यादा है, जिसने मुझे महत्त्व दिया.. वरना मैं अखबार का वही रद्दी टुकड़ा हूँ.. जिस पर बातें तो बहुत अच्छी लिखी है.. पर वह काम किसके लिए किस प्रकार आएगा.. वह उपयोगकर्ता के ऊपर है.. कोई अलमारी में बिछाने के काम लेता है.. तो कोई घर की रद्दी को बाहर फेंकने के लिए अखबार का टुकड़ा उपयोग में ला देता है… या तो किसी भी धर्म ग्रंथ को कवर करने के लिए भी.. कभी-कभी किसी अखबार का टुकड़ा काम आ जाता है.. और कभी सत्यनारायण व्रत कथा में चूरन बांटने के लिए भी… उसी अखबार के टुकड़े से.. एक टुकड़ा फाड़ कर.. लोग चूरन खाने के लिए चम्मच भी बना लेते हैं… अगर इतनी भी मेरी कीमत है.. इस समाज में मेरे साथियों की नजरों में तो मैं अपने को “खाली पन्ना” नहीं कह पाता…

चलिए अब इस बात को आगे बढ़ाते हैं, जो आज मेरे साथ हुआ… जेब में हजार रुपए लेकर अपनी धर्मपत्नी जी के विराट व्यक्तित्व के कारण मोबाइल से दूर हटकर मुझे सब्जी मंडी जाना पड़ा.. सुबह-सुबह कुछ लिख रहा था.. और अगर वह नहीं हटाती तो शायद.. कुछ और लिखता रहता.. पर गृहस्थ आश्रम की इस विश्रामशाला में, जिसमें मुझे हमेशा छुट्टी ही रहती है.. उसके लिए मुझे आज निकलना ही पड़ा.. हम दोनों लोग… बहुत सूझबूझ के साथ सब्जियों का दाम.. बहुत ही.. सोच समझ कर खर्च कर रहे थे.. फिर भी.. हमेशा ठगे जाने का डर.. बना हुआ था.. आलू, मटर, टमाटर चीकू, केला, बैंगन, कद्दू पालक, मेथी, धनिया, मिर्च, मूली, नींबू, गोभी को छोड़ दिया क्योंकि पिताजी को कुछ समस्या आ रही थी इससे, पपीता.. सब ले लिया और तीनों झोले लगभग भर गए..
चलते चलते एक जगह, नारी शक्ति ने अंगूर का दाम पूछ लिया.. और दूसरी नारी शक्ति ने.. ₹100 का सुंदर डब्बा बंद.. अंगूर दिखाकर.. मुझे ललचा भी दिया.. झोले के भार से मैं झुका.. और कहा माताजी 80 में दे दो.. शायद आधा किलो रहा होगा.. देखिए मैं किस प्रकार से झुक गया हूं आपके सामने.. कुछ हास्य का भाव देखकर.. सामने बैठी महिला शक्ति ने.. ₹90 की बात कही और 85 पर तैयार थी.. मेरे बगल में मैंने देखा कि एक बहुत ही पुराने फल विक्रेता खड़े थे.. दुकान की बागडोर नारी शक्ति को देने के बाद.. वह मेरी तरह ही सहयोगकर्ता के रूप में फल का ऊपर नीचे रखरखाव कर रहे थे जिससे, सब उसके प्रति आकृष्ट हो कर देखें..
सारी बात होने के पश्चात भी मेरी धर्मपत्नी एकदम से निर्णय कर चुकी थी.. नहीं लेना अंगूर.. तीन बार प्रयास किया.. फल वाली के सामने दांत निपोर दिया… पर मेरी धर्मपत्नी.. ने जो निर्णय मास्क लगाकर ले लिया.. तो ले लिया.. अंतिम में वह डब्बा उसकी दुकान में रह गया.. और मैंने फल विक्रेता महोदय की ओर देखकर धीरे से कहा.. “भैया लोग झूठे कहते हैं कि महिला की नहीं चलती है”.. देखिए.. किस प्रकार से चल रही है”.. इस पर उस फल विक्रेता महिला ने कहा “काहे नहीं खाने दे रही हैं बहिनी”.. पर मेरी पत्नी ने कहा खट्टे अंगूर है.. इतना महंगा.. रहने दो चलो..
मैंने भी भलाई समझी और वहां से हट जाना ठीक समझा.. भला हो कि महिला बहुत कम उम्र की नहीं थी.. वरना मेरे पर आरोप यही लगता.. कि आप अंगूर के चक्कर में नहीं थे!
पर कोई बात नहीं मैंने भी कसर नहीं छोड़ी और खूब सुनाया.. मैंने कहा अब आज से सब्जी लाने के लिए मैं नहीं जाऊंगा.. तुम लोगों के साथ बेइज्जती करवाने से अच्छा है कि जो घर में मिले वही खा लो.. आखिर सब्जी वाले के सामने इज्जत उतर गई मेरी..उसकी आंखों में एक पुरुष बेचारा बिना अंगूर खाए रह गया..

थोड़ी दूर जाने के बाद.. धर्मपत्नी ने कहा जलेबी ले लो.. मैंने कहा अब स्वास्थ्यवर्धक चीज छोड़कर.. इतने पैसे बचाएं थे आपने.. उसको आप क्यों जाया कर रही हैं.. जलेबी कौन फायदेमंद चीज है.. लेकिन उन्होंने कहा.. अंगूर खट्टे थे और जलेबी मीठी है.. मैंने आपको दुखी किया है.. और इसीलिए जलेबी खिलाकर मुंह मीठा कर रही हूँ.. मैंने यहां भी अपनी बात.. अपनी जेब में रखे और.. सीधा जाकर हलवाई से.. थोड़ी सी जलेबी ले ली..
सत्य नारी शक्ति का कार्यक्रम चलाने वाला, डॉक्टर सत्य प्रकाश, निश्चित ही, जलेबी खा कर.. अनुज्ञा कार्यक्रम को बल देगा… मुझे विश्वास है.. मेरे साथी देश के कोने कोने से जो अंगूर का रेट आज बताएं हैं.. उसमें से एक रेट यह भी था.. पर अधिकांश ने यही कहा.. कि अभी अंगूर खट्टे हैं..
मीठे अंगूर सच में बहुत कम लोगों के नसीब में अभी हैं.. अभी लोग जलेबी से ही काम चला रहे हैं!

डॉक्टर सत्य प्रकाश एक वैज्ञानिक है काशी हिंदू विश्वविद्यालय के, समाज में महिला सशक्तिकरण और शिक्षा अभियान व्यक्तित्व विकास के लिए डॉ सत्या होप टॉक कार्यक्रम चला रहे हैं. हमसे कोई भी सदस्य जुड़ कर अपना योगदान दे सकता है, इनका संपर्क सूत्र 94158 12128 है

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