कौन है जो कातिल बनाने में लगा है
कौन है जो मुझे आजमाने में लगा है।
वक्त का रेत फिसलते चला है अबके
चिराग ले कौन घर जलाने में लगा है
रक्तपात हो बहे तो छींटे पड़ेंगे खून के
आदमी अब आदमी खाने में लगा है।
मानव बैठा राख की ढेरी अनियंत्रित,
चेहरे पे कफ़न सजा गाने में लगा है।
चिराग बुझाने को चली आंधी आ गई,
वो सहर तूफां चिराग बुझाने में लगा है।
भूतों को मान बैठे एक शाह सहारो में
लाश जिंदा जला घर डराने में लगा है।
फूल खिलने निकल गिर पड़े बहारों में
‘केएल’ सौदा चिरागा लगाने में लगा है।
लेखन ✍️✍️
के एल महोबिया
अमरकंटक अनूपपुर मध्यप्रदेश