उठे स्वप्न छोड़ दी नाव समंदर में बस उड़ानें पाने के लिए
खोज ली डूबके मोती समंदर से थाह ली जमाने के लिए।
चले तूफान ठहर जाए जहान जिंदगी की बड़े पैमाने में
नया दौर है हम खोज लेंगे नई राह भारी इस जमाने में।
चल पड़े घर से निकल मुसाफिर कहीं मिले जा ठिकाना,
जिंदगी रही कैद मुनासिब नहीं मिले राह आसान बनाना।
गर डर डगर जिंदगी से समंदर में नाविक फिर नहीं जाना,
राह खोज देश भटकते हुए चले इतिहास वास्को डिगामा।
जिंदगी मुसाफिर है चलो यारों दुनिया के जहां कभी कहीं
खोजें डूबके समंदर में मोती लेके मूल्यों नया दौर जमाना।
हाथ बांध बैठे रहे मन को मार कर तो मंजिल मिलेगीनहीं,
बड़ा पेड़ लड़खड़ाते हुए भटकते चल जा निकल जमाना।
जो चले हैं जहां में मंजिल मिली है उन्हीं बदलाव के लिए
बुद्ध गौतम पैगंबर सभी चलते भटकते जा मिले ठिकाना।
बड़े कदम विवेकानंद के दूर सात समंदर पार के बने योगी
खोज ली दुनिया की सूर्य चंद्र पहुंचे विज्ञो का रहा जमाना।
जो डरे गिरने से मिट गई हस्ती जहां की ज़मीं आसमां से
दीवाने पग चले भटकते भूले पहुंचे मंजिल नूतन पैमाना।
चले तूफां उजड़ी कई जिंदगानियां सब ठिकाने बदल गए,
दे दी चुनौती जब तूफां को उजड़े घर अब बसाने लग गए।
चल पड़े लड़खड़ाते हुए पर तूफान के बाद सब बेगानों में
तोड़ दी दीवारें जमाने की नए नब्ज के रूह को बचाने में।
कर ली पूरी तैयारी दौड़ जमाने जहां उफान पाने के लिए,
कर शौक पूरी सपनों की उड़ान भरें मंजिल पाने के लिए।
लेखन ✍️✍️
के एल महोबिया
अमरकंटक अनूपपुर मध्यप्रदेश