मै उदास ही…

मै उदास ही रह जाऊंगा!तेरे पास न अब आऊंगा!ज़ब भी मुझको याद करोगे!हिचकी हिचकी जुड़ पाउँगा! मुझे पता है! मै अछूत हूँ!मेरे संग चलना! ” मिटना” है!मै निकला हूँ राही बन कर!निज” कहना बेबस क्रीड़ा है! इन राहों में एक छाया बन!मिले मुझे कुछ मन बाँटा है!यही राह!जो घर कब था पऱ!नेह सदन बन पाया…

डॉक्टर सत्य प्रकाश

मै उदास ही रह जाऊंगा!
तेरे पास न अब आऊंगा!
ज़ब भी मुझको याद करोगे!
हिचकी हिचकी जुड़ पाउँगा!

मुझे पता है! मै अछूत हूँ!
मेरे संग चलना! ” मिटना” है!
मै निकला हूँ राही बन कर!
निज” कहना बेबस क्रीड़ा है!

इन राहों में एक छाया बन!
मिले मुझे कुछ मन बाँटा है!
यही राह!जो घर कब था पऱ!
नेह सदन बन पाया साथी!!

दोराहे… हरदम आएं हैं!
ज़ब भी हमने कदम बढ़ाये!
हमने चुना तुम्हे था हरदम!
तुमने बढ़ ज़ब कदम मिलाये!

आज भला क्यों यूं उदास हो!
मौन बने… बस मौन.. किए हो!
जो कुछ शब्द संजोये मैंने!
उन शब्दों में तुम कितने हो!?

सच कहता हूँ!मेरे “जीवन”!
बहुत कठिन है! अब रुक जाना!
वहाँ..कहाँ..जाता हूँ प्रति दिन!
जहाँ रहा प्रति क्षण का जाना!

कहाँ… इसे कोई लिख पाया!
जो मैंने… अब तक गाया है!
ज़ब भी मैंने खोजा तुमको!
तुम जाने! जग भी पाया है!

चलो! मुझे फिर से समझा दो!
क्यों लिख दूँ! कुछ मर्म! मीत! मैं!
जिन गीतों में तुम! ना ख़ुद को!?
पा पाओ!? लिखना पीड़ा है!!

मै उदास ही…

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