रवींद्रनाथ ठाकुर नवगछिया।सावन आते ही मिथिलांचल में विभिन्न पर्व त्योहारों का दौर शुरू हो जाता है। ऐसा ही महत्वपूर्ण लोक पर्व है मधुश्रावणी। मधुश्रावणी पर्व मिथिलांचल की अनेक सांस्कृतिक विशिष्टताओं को समेटे हुए है। इस पर्व को नवविवाहिताएं आस्था और उल्लास के साथ मनाती हैं।

मिथिलांचल में नवविवाहिताओं द्वारा यह व्रत अपने सुहाग की रक्षा एवं गृहस्थाश्रम धर्म में मर्यादा के साथ जीवन निर्वाह हेतु रखा जाता है। इस पर्व में प्रतिदिन नवविवाहिताएं प्रकृति के अद्भुत अनुपम भेंट यथा पुष्प-पत्र इत्यादि को एकत्रित करती है तथा मिट्टी के नाग-नागिन, हाथी इत्यादि बनाकर दूध-लावे के साथ विशेष पूजन के द्वारा कथा भी श्रवण करती हैं, जो जीवन में एक अदभूत यादगार क्षण के रूप में सदा के लिए प्रतिष्ठित हो जाता है। मान्यता है कि वैदिक काल से ही मिथिलांचल में पवित्र सावन मास में निष्ठापूर्वक नाग देवता की पूजन करने से दंपती की आयु लंबी होती है। मधुश्रावणी व्रत का महात्म्य बताते हुए नवविवाहिता दीक्षा कुमारी एवं सोनी झा ने कहा कि 15 दिनों तक चलने वाला यह व्रत एवं पूजन टेमी के साथ संपन्न होता है। यह पर्व नव दंपतियों के लिए एक तरह से मधुमास है। इस बार यह पर्व श्रावण कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि से आरंभ होकर श्रावण शुक्ल पक्ष तृतीया को संपन्न होगा। यह 28 जुलाई से आरंभ होगा और 11 अगस्त को संपन्न हो जाएगा। मधुश्रावणी पर्व में गौरी शंकर की पूजा तो होती ही है साथ ही साथ विषहरी एवं नागिन की भी पूजा होती है।