14 दिवसीय मधुश्रावणी व्रत में पति के दीर्घायु के लिए नवविवाहिता कथा के तीसरे दिन की पूजा

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मिथिलांचल परंपरा व प्रकृति के जुडा़व का 14 दिवसीय मधुश्रावणी व्रत में पति के दीर्घायु के लिए नवविवाहिता कथा के तीसरे दिन की पूजा

मिथिलांचल संस्कृति और प्रकृति से जुड़े हुए महापर्व मधुश्रावणी पूजा अखंड सौभाग्य के कामना के साथ नवविवाहिता ने गुरुवार से आरंभ कर दिया है। इसअवसर पर नवगछिया अनुमंडल के विभिन्न खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में व्रत के पहले दिन से मधुश्रावणी के गीत गुंजने लगी है। धैर्य ,त्याग और निष्ठा का पावन सावन मास के कृष्ण पक्ष के पंचमी तिथि से शुरू हो गया है। जो शुक्ल पक्ष तृतीया को संपन्न होगा। जिसको लेकर नवविवाहिता में उत्साह देखी जा रही है। 14 से 15 दिनों तक होने वाले इस पर्व में मुख्य रूप से गौरी और भगवान शिव की पूजा होती है।

व्रत के दौरान व्रती पूजा अर्चना के बाद ससुराल से आए भोजन को ग्रहण करती है। मधुश्रावणी मिथिलांचल की अनेक संस्कृति विशेषताओं में से से एक है। यह पर्व 25 जुलाई से शुरू है। आगामी 7 अगस्त को टैमी दागनी परंपरा के साथ समापन होगा। इस पावन में सबसे बड़ी विशेषता है कि यजमान के साथ पुरोहित की भी भूमिका महिलाएं ही निभा रही है। इस पावन में व्रती नमक ग्रहण नहीं करती है। 14 दिन तक फलाहार करती है। निष्ठा ,श्रद्धा सात्विकता का महापर्व है। कथा से पहले और बाद में शिव पार्वती, बिषाहड़ा के गीत गाते हैं। अकवन (आक) कनेल के फूलों से सावन के पावन मास में शिव पार्वती की पूजा करती है।

पूजन के दौरान मैंना,पंचमी, मंगला, गौरी महादेव कथा गौरी तपस्या, शिव विवाह कथा सहित 14 खंडो में कथा का श्रवण किया जाता है। वही कथा वाचिका आकांक्षा मिश्रा ने बताया कि माता पार्वती सबसे पहले मधुश्रावणी व्रत रखा था। जन्म जन्मांतर तक भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त करती रही। इस पर्व को करने से पति की दीर्घायु होती है। घर में सुख शांति बनी रहती है। वही कथा शुरू होने के बाद सुहाग ,कोहबर, भोले शंकर पार्वती के गीत गाकर भगवान शिव पार्वती को प्रसन्न करती है।

कथा के विराम के बाद बहन का हाथ पकड़ कर प्रत्येक दिन भाई उठाता है । अपने भाई को इस कार्य के लिए दूध फल आदि प्रसाद प्रदान करती है। इस बार व्रत कर रही नवविवाहिता नवगछिया के जूही झा ने बताया कि 14 दिन तक फलाहार कर पूजा कर रहे हैं। यह त्यौहार भगवान के पूजा पाठ के साथ- प्रकृति से भी गहरा जुड़ाव रखता है। पूजा में सभी सामान प्रकृति प्रदत्त होता है। सुबह कथा रसपान के साथ भजन व संध्या आरती का कार्यक्रम होता है। बहुत ही अच्छा लगता है।

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