मुसलमानों के ख़तने (Circumcision) के बारे में आपने ख़ूब सुना और पढ़ा होगा, आज यहूदियों के ख़तने के बारे में पढ़िए और जानिए कि आखिर इस धरती पर ये परंपरा शुरू कैसे हुई ?
अकबर इलाहाबादी का एक शेर है “जो वक़्त-ए-ख़त्ना मैं चीख़ा तो नाई ने कहा हंस कर, मुसलमानी में ताक़त ख़ून ही बहने से आती है.” हालांकि, अगर आप ख़तने (Circumcision) के इतिहास को करीब से देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि इसका अस्तित्व पृथ्वी पर तब से है जब यहां ना मुसलमान थे ना यहूदी धर्म को मानने वाले लोग. दरअसल, ख़तना दुनिया की कुछ सबसे प्राचीनतम शल्य प्रक्रियों में से एक है. यही वजह है कि इसका जिक्र प्राचीन मिस्र की परंपराओं में भी मिलता है. तो चलिए आज इस आर्टिकल में आपको इससे जुड़ा इतिहास और इसके शुरू होने का विज्ञान बताते हैं।
ख़तना की शुरुआत कब और कैसे हुई?
दुनिया के प्रख्यात शिशु सर्जन अहमद अल सलीम की एक किताब है, ‘ऐन इलस्ट्रेटेड गाइड टू पेडियाट्रिक यूरोलॉजी’ इसके अनुसार, ख़तना की शुरुआत आज से करीब 15 हजार साल पहले मिस्र में हुई थी. कहते हैं कि वहां ये परंपरा इतनी ज्यादा फैली हुई थी कि बिना ख़तने वाला लड़का या पुरुष उन लोगों के लिए किसी अजूबे से कम नहीं था।
BBC की एक रिपोर्ट के अनुसार, मिस्र के सैनिक अपने लीबियाई पुरुष ग़ुलामों को अपने घर ले जाते थे, ताकि उनके रिश्तेदार बिना ख़तने वाले गुप्तांगों को देख सकें. अब सवाल उठता है कि आखिर मिस्र में इसकी शुरुआत कैसे हुई. इसके बारे में इंटरनेट पर जब आप तलाशेंगे तो आपको अलग अलग तरह के तर्क पढ़ने को मिलेंगे. लेकिन जब आप इसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझने की कोशिश करेंगे तब आपको पता चलेगा कि ख़तना की प्रक्रिया दरअसल एक इलाज के तौर पर शुरू हुई थी.
किसी बीमारी का इलाज था ख़तना?
इसे समझने के लिए आपको प्राचीन काल के मिस्र में जाना होगा. दरअसल, मिस्र के लोग शुरू से ही शल्य चिकित्सा में माहिर रहे हैं. यही वजह है कि वो उस दौर में भी ममी बनाने की कला जानते थे. देखा जाए तो ईसा पूर्व से तीन हजार साल पहले का मिस्र आधुनिकता और चिकित्सा दोनों में काफी समृद्ध था. अब आते हैं ख़तना की शुरुआत पर. इंटरनेट पर काफी पढ़ने और रिसर्च करने के बाद मेरी समझ कहती है कि इसकी शुरुआत लड़कों को फिमोसिस बीमारी से बचाने के लिए किया गया था.
दरअसल, ये एक ऐसी बीमारी है जिसमें पुरुषों के लिंग की ऊपरी स्किन बहुत ज्यादा टाइट हो जाती है और वह पीछे की ओर नहीं जाती. इससे पुरुषों के लिंग का विकास नहीं हो पाता और उन्हें काफी अन्य तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता. मिस्र के लोगों ने इसका इलाज ख़तना के जरिए शुरू किया और फिर धीरे धीरे ये परंपरा में बदल गई. हालांकि, आज के दौर में इस बीमारी का इलाज ख़तना के जरिए करना कितना सही है ये तो कोई डॉक्टर ही बता सकता है.
मिस्र से चली ये परंपरा यहूदियों, मुसलमानों और ईसाइयों तक पहुंच गई. हालांकि, हज़रत ईसा यानी ईसा मसीह के ख़तने के बाद ईसाइयों ने इस परंपरा को बंद कर दिया. लेकिन यहूदियों और मुसलमानों ने इसे जारी रखा. अब आते हैं यहूदियों के ख़तने पर. मुसलमानों के ख़तने के बारे में तो पूरी दुनिया जानती है, लेकिन यहूदियों के ख़तने के बारे में बेहद कम लोग जानते हैं.
आपको बता दें, जब किसी यहूदी के घर बेटे का जन्म होता है तो जन्म के 8वें दिन के बाद लड़के का ख़तना किया जाता है. यहूदी इसे इब्राहीम का करार भी कहते हैं. जिस दिन घर में किसी बच्चे का ख़तना होता है उस दिन पूरे कुनबे में जश्न का माहौल होता है. इसकी धार्मिक मान्यता पर जाएं तो यहूदियों के अनुसार, ख़ुदा ने इब्राहीम से कहा, “तुम्हें मेरे और तुम्हारे और तुम्हारी नस्लों के बीच इस समझौते का पालन करना होगा कि तुम में से हर मर्द का ख़तना किया जाए.”