(1)
ऐसे ही विजयादशमी हम हर साल मनाते जाएँगे
दशानन का पुतला भी हम हर साल जलाते जाएँगे
आखिर और जलाएँगे कब तक ऐसे ही रावण को
रामलीला खेलेंगे पर क्या हम राम चरित्र जी पाएँगे ।
(2)
पूछ रहा है रावण कुल मुझे जलाने वाले होते कौन
क्या तुम राम चरित्र जी रहे या फिर कोई हो गौण
बहन की इज्जत का बदला लेना माना मेरी गलती
बहन तेरी यदि होती तो क्या तुम बैठे रह जाते मौन ।
(3)
जला दिया है रावण को अब अत्याचार नहीं होगा
सरकारी कार्यालयों में अब भ्रष्टाचार नहीं होगा
चहुँदिश यहाँ रामराज्य के फूल ही फूल खिल जायेंगे
किसी गुड़िया का धरा पर अब बलात्कार नहीं होगा ।
रचना स्वरचित ©
जय हिन्द सिंह’हिन्द’
आजमगढ़, उ० प्र०