गीत
मापनी16,16..
मोह हमारे उर में बैठा, इस रावण को मार भगायें।
काम क्रोध मद लोभ दूर कर,खुद में ही रामत्व जगायें।।
नव द्वारे का बना महल है,
इसमें डाले है तू डेरा।
यह तो एक मुसाफिरखाना,
चार दिनों का रैनबसेरा।।
मत करना तू मोह जगत से, अपने मन को ये समझायें।
काम क्रोध मद लोभ दूर कर, खुद में ही रामत्व जगायें।।1।।
नश्वर तन से नेह लगाया,
कभी नहीं हरि का गुण गाया।
झूठी काया झूठी माया,
मूरख मन इसमें भरमाया।।
तोड़ जगत का झूठा नाता, हरि से अपना नेह लगायें।
काम क्रोध मद लोभ दूर कर, खुद में ही रामत्व जगायें।।2।।
काम क्रोध मद मत्सर माया,
तन के भीतर पाँच लुटेरे।
अहंकार मोहादिक दुश्मन,
देते हैं सब कष्ट घनेरे।।
इंद्रिय के घोड़े अति चंचल,संयम के कोडे़ बरसायें।
काम क्रोध मद लोभ दूर कर, खुद में ही रामत्व जगायें।।3।।
सबसे करना प्रेम जगत में,
कोई अपना नहीं पराया।
एक पिता के सभी पुत्र हैं,
सबमें उसका नूर समाया।।
अंतस तल में घना अँधेरा, आत्म ज्ञान के दीप जलायें।
काम क्रोध मद लोभ दूर कर,खुद में ही रामत्व जगायें।।4।।
करे मांस मदिरा का भक्षण,
सबको पीड़ा जो पहुँचाये।
झूठ कपट कर माया जोड़े,
वे ही दानव है कहलाये ।।
नहीं दानवी कृत्य करें हम,मानवता का अलख जगायें।
काम क्रोध मद लोभ दूर कर, खुद में ही रामत्व जगायें।।5।।
विजयदशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ सादर समर्पित
प्यारेलाल साहू