शिक्षा और बिहपुर

  शिक्षा सबका मौलिक अधिकार है । बिहपुर में शिक्षा की क्या व्यवस्था है इस पर एक नज़र जरुर करनी चाहिए । आज प्रावेट विद्यालय और सरकारी विद्यालय दोनो पर चर्चा करुँगा । पहले प्राईवेट विद्यालयों की चर्चा की जाए क्योंकी सरकारी विद्यालयों की अव्यवस्था प्राईवेट विद्यालयों को जन्म देते हैं । बिहपुर विधानसभा में…

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शिक्षा सबका मौलिक अधिकार है । बिहपुर में शिक्षा की क्या व्यवस्था है इस पर एक नज़र जरुर करनी चाहिए । आज प्रावेट विद्यालय और सरकारी विद्यालय दोनो पर चर्चा करुँगा । पहले प्राईवेट विद्यालयों की चर्चा की जाए क्योंकी सरकारी विद्यालयों की अव्यवस्था प्राईवेट विद्यालयों को जन्म देते हैं । बिहपुर विधानसभा में आज हर गांव में लगभग प्राईवेट विद्यालय हैं । प्राईवेट विद्यालय खोलने के लिए यहाँ किसी भी सरकारी नियमावली की जरुरत तो है हीं नही । दो चार मैटिक इंटर के छात्र/छात्रा को दो तीन हज़ार देकर आसानी से विद्यालय प्रारंभ कर लिया जाता है फिर बड़े बैनर में लिखवाया जाता है , “…इंग्लिश मीडियम स्कूल” । फिर नमांकण ,पंजियण ,पुस्तक,पोषाक के नाम पर दस से पंद्रह हज़ार तो आसानी से वशूल कर लिए जाते है । सबसे अहम होती है पोषाक,किताब की दुकानदारी । ये विद्यालयों के खुद के दुकान हुआ करती है । हर वर्ष नामांकण सोने का अंडा देने वाली धंधे की तरह फलती फूलती है । और प्रत्येक दो वर्ष में स्लेबस बदल दिए जाते हैं ताकी पुस्तकों की बिक्री जारी रहे और पुस्तकों के कमीशन 40 से 60 प्रतिशत विद्यालय को मिलता रहे । प्राईवेट विद्यालय आज का सबसे बड़ा व्यापार का केंद्र बन चुका है । और खास बात ये की ज्यादातर विद्यालय छठी से सातवीं तक के हीं मिलेंगे । कमाई का एक नियम यह भी है की बच्चों को अधीक से अधीक नर्सरी ,एलकेजी में ये कह कर नामांकित किया जाता है की बच्चा इंग्लिश में बहुत कमजोर है । विद्यालय के पदाधिकारी चाहते हैं की बच्चे ज्यादा दिन विद्यालय में रहे ताकी आमदनी जारी रहे बच्चे की उम्र कुछ भी हो मायने नही रखता है । बच्चों से साल में चार बार परिक्षा शुल्क के नाम पर भी पैसों की उगाही हो हीं जाती है उपर से गाड़ी की व्यवस्था है तो विद्यालय की चांदी हीं चांदी । खैर ,ये तो थे शिक्षा के व्यापारिक संगठन हैं जिस पर सरकार ,प्रतिनिधि का कभी कोई मतलब नही रहता है ।
अब बात करते सरकारी विद्यालयो की तो ज्यादार विद्यालय तो गांव के विवाह भवन हीं हैं । विवाह भवन इसलिए की यहाँ वरयात्री के ठहरने की उत्तम व्यवस्था होती है और साल में तीन से चार माह तो निर्धारित है वरयात्री के लिए । सरकारी प्राईमरी/मध्य विद्यालय के प्रभारी की तो चांदी हीं चांदी क्योंकी ज्यादातर प्रभारी का भोजन मेन्यू से कोई वास्ता नही होता है । वास्ता होता है तो बस पैसे बचाने से । विद्यालय के तेज तर्रार शिक्षक का विद्यालय से वास्ता नही रहता है ,बस बिइओ ऑफिस में बैठ गए और फिर कागज़ी ओर-फेर कर लाखों की कमाई प्रत्येक माह मिलना प्रारंभ हो जाता है । इन शिक्षकों पर प्रभारी या पदाधिकारी या फिर प्रतिनिधि का कोई निर्देश काम नही करता है क्योंकी इनका अपना रुतवा होता है । कुछ शिक्षक माह में कुछ दिन विद्यालय आते हैं शेष समय के लिए एक आवेदन पहले से प्रभारी के पास छुट्टी का जमा रहता है जिसे आकस्मिक जांच के समय दिखाया जा सके । कुछ शिक्षक जिनकी संख्या बेहद कम होती है ,वो बच्चों में निरंतरता से शिक्षा देते हैं तो प्रभारी महोदय का सारा प्रभार इन्ही के उपर थोप देते हैं । पोषाक,छात्रवृति,पुस्तक आदि के पैसे बच्चों को सरकार सब मुहैय्या कराती है बस शिक्षा को छोड़कर । हलांकी कुछ प्रतिनिधियों का शिक्षा पर ध्यान तो रहता है पर करे भी क्या क्षेत्रिय होने के कारण पैरवी भी तो है ।
विधानसभा में कई अन्तरस्नातक या उच्चविद्यालय हैं , इन विद्यालयों में भवन है तो शिक्षक नही, शिक्षक हैं तो भवन नही । इन अभावों में छात्र प्राईवेट शिक्षकों को मोटी रकम देकर शिक्षा ग्रहण करते हैं जिसके परिणाम आने पर सरकारी विद्यालय गर्व से कहते हैं मेरे विद्यालय के छात्र हैं । विद्यालयों में खेलकूद के प्रसाधन मौजूद तो होते हैं पर सब सजाने की वस्तु मात्र होते हैं । इन्हें विद्यालयों में सुरक्षित रखा जाता है ताकी हर वर्ष खरीदना नही पड़े और पैसों की बचत हो । पुस्तकालय/प्रयोगशाला बस सजावट के लिए हुआ करते हैं । और प्रायौगिक में छात्र को नंबर तो शिक्षको को 300 से 500 देने पर हीं मिलता है । नवमीं दसवीं के छात्र के विद्यालय की परिक्षा और कॉपी जांच तो खानापूर्ती मात्र है ।फिर शिक्षकों को चुनाव जैसे सरकारी काम भी तो करना है । मीडिया को दो मरेे पांच घायल से फुरसत नही ,तो वो क्यों ध्यान दे ? पर कोई प्रतिनिधि इनपर ध्यान दे भी तो क्यों ?

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