या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।

छठवें दिन कात्यायनी देती रोग-शोक मुक्ति पाते। षष्ठी मां कात्यायनी की पूजा को है समर्पित करते। छठा स्वरूप करुणामयी, भक्तों तप अर्पित करते। १ अक्टूबर पूजा, अभय दान हेतु रूप धारण करती। महर्षी कात्यायन के तप से प्रसन्न हो, पुत्री बन आती। कात्यायनपुत्री होने से, रूप का नाम कात्यायनी दिया। दानव महिषासुर वध कर, महिषासुर…

डॉ० कवि कुमार निर्मल

छठवें दिन कात्यायनी देती रोग-शोक मुक्ति पाते।
षष्ठी मां कात्यायनी की पूजा को है समर्पित करते।
छठा स्वरूप करुणामयी, भक्तों तप अर्पित करते।
१ अक्टूबर पूजा, अभय दान हेतु रूप धारण करती।
महर्षी कात्यायन के तप से प्रसन्न हो, पुत्री बन आती।
कात्यायनपुत्री होने से, रूप का नाम कात्यायनी दिया।
दानव महिषासुर वध कर, महिषासुर मर्दनी कहलाती हैं।
कात्यायनी व्रती, रोग, दुख और भयमुक्त होते हैं।
आराधना से सभी वैवाहिक बाधाओं से मुक्ति पाते हैं।
छठे दिन सुबह स्नानोपरांत स्वच्छ वस्त्र धारण करते है।
पूजा स्थल की सफाई करके गंगाजल से शुद्धि करते हैं।
कात्यायनी की प्रतिमा अथवा तस्वीर को नमन् करते हैं।
देवी को पीले अथवा लाल रंग के वस्त्र अर्पित करते हैं।
मां को पीले रंग के पुष्प, कच्ची हल्दी की गांठ चढ़ाते हैं।
शहद भोग, मंत्र, दुर्गा चालीसा, सप्तशती पाठ विधि हैं।
तत्पश्चात धूप-दीप जलाकर मां की आरती उतारते हैं।
पूजा कर सभी को प्रसाद बांट, भक्त ग्रहण करते हैं।
चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दू लवर वाहना
कात्यायनी शुभं दद्या देवी दानव घातिनि।
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
डॉ० कवि कुमार निर्मल_✍️
DrKavi Kumar Nirmal

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