(दुर्मिल सवैया-8×सगण-112)
(कमनीया-नायिका)
कजरा अँखियाँ मुँहना ललिया पलकाँ फहरायि रही मुनियाँ ।
नकिया नथिया मथवा टिकवा चँदना ललचायि रही रनियाँ ।
गरवा हरवा भलु मोतिनु कै मनवा भरमायि रही जनियाँ ।
कनवा झुमुकौ लहरायि उतौ रतिरूप लजायि रही धनियाँ ।।1।।
[ मधुरस सवैया-7×जगण-121+1यगण-122]
कटारि बनी त हँ भौंहु कँटीलु ज बेधि रहीं हिय भीतरि ताईं ।
रसालु चुवै मुसकी ज झरै पलुहाबतु हौ पिय तीतरि नाईं ।
निहारतु हौं रसिकै भँवरे रसु चूसनु कूँ भलु मीतरि पाईं ।
फिरै जहुँ पौरि उ धन्य भयो अनुरागु लखातु फुरै तरि जाईं ।।2।।
(दुर्मिल सवैया )
कुँदुरू फँकिया जसु होठु अहै सुगना नसिका मनमोहतु हौ ।
बरु दंतु कली मणिना चमकै बतियाँ मिसरी बहु घोलतु हौ ।
मुदिता रतिका रसराजु सँगे अभिसारि मँझी बहु लोरतु हौ ।
जबहीं-तबहीं मकरंदु उड़ेरि चहूँ दिसि मा बहि डोलतु हौ।।3।।
जरिजातु फुरै तकिकै चँदना चँनना धरिनी बहु सुन्नरि हौ ।
रुनकी-झुनुकी झनकै जबहीं-तबहीं सुरुतालु हँ मुन्नरि हौ ।
मधुरी बगिया महिं कूजतु जौ जसु लागतु बा भलु गुन्नरि हौ ।
मनमीतु जही मनप्रीतु जही उपमा-उपमानु त नुन्नरि हौ ।।4।।
(सुन्नरि- सुन्दर , मुन्नरि- मनमोहक , गुन्नरि- गुणी , नुन्नरि- हटाना, अलग करना , चँदना-चाँद , चँनना- सुन्दरी , मधुरी-कोयलरि )
(गङ्गोदक सवैया-8×रगण 212)
साँवरी जानु ले प्रेम कूँ रागु जू कौनु तुम्हैं भला पूँछिहै बावरी ।
जानि ले मानि ले बातु हौ नीकु सूँ कौनु तुम्हैं भला बूझिहै बावरी ।
साँचि हौ बातु ई गाँठि मा बाँधि कै कौनु तुम्हैं भला रूझिहै बावरी ।
लालिमा गालु कै डूबिहौ आजु जौ कौनु तुम्हैं भला
खूझिहै बावरी ।।5।।
(रूझिहै–ध्यान देना , खूझिहै-खोजना)
ज्ञानेन्द्र पाण्डेय “अवधी-मधुरस” अमेठी
8707689016