———————
अमर कीर्ति है अखिल विश्व में
विदित तुम्हें राणा की।
शौर्य शक्ति पुरुषत्व रक्त से
लिखी दी हल्दी घाटी।।
मेवाड़ी धरती पर जिस दिन
शासक आन चढ़ा था।
महाराणा राज्य बचाने को
रण थल में कूद पड़ा था।
केसरिया वीरों के आगे
अरि दल कांप रहा था।
दुश्मन का दल युद्ध छोड़कर
रहस्य भाग रहा था।
था छोटा सा राज्य किंतु थे
स्वतंत्रता की थाती।
लिखा गया इतिहास
धन्य है राजिस्थानी माटी।।
किए अनेकों युद्ध भयंकर
विजय सदा पाई थी।
राजपूत इन रण धीरों ने
न मात कभी खाई थी।
कर्मवीर नर सिंहों से
थर -थर रण भूमि थर्राई थी।
अजय दुर्ग चित्तौड़ देश में
जय की ध्वनि छाई थी।
कई शर्ते अकबर ने रक्खी
झुका नहीं सेनानी।
शौर्य शक्ति पुरुषत्व रक्त से
लिख दी हल्दी घाटी।।
अकबर का था लक्ष्य
दिग्विजय राणा खटक रहा था।
मेवाड़ी धरती का कांटा
दिल में कसक रहा था।
था निजतंत्र उपासक राणा
स्वाभिमान बिखरा था।
स्वतंत्रता का दीप प्रज्वलित
घर-घर जाग रहा था।
कैसे हो दिग्विजय
यही थी अकबर की है रानी।
शौर्य शक्ति पुरुषत्व रक्त से
लिख दी हल्दी घाटी।।
————–
मैं घोषणा करता हूं कि यह रचना मौलिक स्वरचित, अप्रकाशित एवं अप्रसारित है। यह अन्यत्र विचाराधीन नहीं है।
भास्कर सिंह माणिक
कोंच,जनपद -जालौन,
उत्तर -प्रदेश-285205