क्षण में तुम राधा बन, मधुवन में रास रचाती।
क्षण में कैकयी बन, दशरथ पुत्र को ठुकराती।
क्षण में सीता बन, रो-रो भूमिगत् हो तुम जाती।
क्षण में निरीह अबला बन, वस्तु सम बन जाती।
क्षण में सबला लक्ष्मी बाई बन, हुंकृति गुँजाती।
क्षण में कौशिकी-नृत्य, आरोग्य का वर दे जाती।
क्षण में दुर्गा बन, रण में रक्तिम नदियाँ बहवाती।
क्षण-क्षण त्रहिमाम्, दग्ध मानवता जब है चिल्लाती।
क्षणभर में तुम काली का, अजेय रौद्र रूप दर्शाती।
क्षण में कृष्ण की बाँसुरी में, बस मधुर तान सुनाती।
क्षण में ठिठोली कर, ब्रज की बाला बन जाती।
क्षण में संतप्त हो, आत्म-दाह से शिव को रुलाती।
क्षण में प्रियतमा बन, ग्रीवा की माला बन जाती।
क्षण में अप्सरा बन, ऋषि-मुनियों को ललचाती।
क्षण में युवा-पीढ़ी की, आँखों का तारा बन जाती।
क्षण में ममता की, मूरत बन बच्चे का सर सहलाती।
क्षण में दोस्त बन, साहस का ऊँचा बांध बन जाती।
क्षण में बहन बन तुम, भाई के प्रेम से बंध जाती।
क्षणभर में बवांगिनी बन, ह्रदयांचल में छा जाती।
क्षण में प्रेणना-श्रोत बन, कवि का मन हरसाती।
क्षण क्षण कृपा बरसा, धरा का संतुलन बनाती।
क्षण क्षण नारी-महिमा लिख, थक कर नहीं रुकती।
क्षण भर में काव्य-रच, स्तुतिगान तूं नित सुनाती।
क्षण क्षण भक्ति-प्रेम-श्रृंगार की, अद्भुत त्रिवेणी।
क्षण भी सृष्ट तुझसे, तुम्हीं हो -जगत की देहली।
माँ कहलाती, रूप अनेक दरसाती है।
माँ तो सबकी एक जैसी हीं होती है।
दोनों हाथों से सदा- देती हीं देती है॥
खून-पसीना-दूध-हुनर-संचित देती सारा।
कहती रहती है मेरा बच्चा- प्यारा दुलारा॥
माँ तो ममता की साक्षात मूरत होती है।
भ्रूण का १०माह सिंचन- जीवन देती है॥
बच्चे को माँ, आँख का तारा कहती है।
माँ तो सबकी एक जैसी हीं होती है॥
🙏 डॉ. कवि कुमार निर्मल🙏