(ॐ जय माँ कालिरात्रि !)
कारी-कारी सातवीं शक्ति , हँ कालिरात्रि भलु रूपु धराहिं ।।
लपु-लपु अगिया मुखु सों निकसै , पापी झुलसि-झुलसि तउं मराहिं ।।
गदहा उपरौ मातु बिराजीं , खड्गु सकोरा हँथहीं सुहायि ।।
पूजहिं बिधि-बिधानु जे माई ,तंतरु-मंतरु सबै सधि जायि ।।
गलु माला बिजुरी समु लौंकै , जाकौ निरखै असुरु डरायिं ।।
यचमचमु-चमचमु काया चमकै , फरफर-फरफर केसु फहरायिं ।।
खप्पर बाली माई काली , सबकै सदा करतीं कल्यानु ।।
एकु हांथु महिं लिये कटारी , मातु भयंकरी कहै जहानु ।।
चण्डु-मुण्डु संहारकु देवी , कहाँ लौ महिमा करौं बखानि ।।
मातु कराली दक्खिनु बाली , भद्दरु काली तुमहीं क भानि ।।
सबु परि दया किहौ महतारी , मूढ़मती कछु समझि न पायि ।।
अंगु-अंगु महिं बसी भवानी , ग्यानी-ध्यानी कहैं समुझायि ।।
(माँ काली कलकत्ते वाली सबका कल्याण करें !)