हे भारत के बेमिसाल सर्वोच्च सेनापति,
आपके शौर्य को, कोटि कोटि है नमन।
इन आंखों को विश्वास नहीं हो रहा है,
आपके लिए रो रहा है हिंद का चमन।
हे भारत के बेमिसाल……….
आपको देख शत्रुओं के बिगड़ते थे सारे,
दिन में प्रत्येक को नजर आते थे तारे।
आपकी वीरता का सूर्य भी था दीवाना,
रो रही गंगा मैया सिसक रही है पवन।
हे भारत के बेमिसाल…………
हे भारत के महान्, सपूत माटी के लाल,
आपने शत्रुओं को कराया है कदम ताल।
आप तो खिलते गुलाब और लाजवाब हैं,
गम इतना कि, सूख नहीं रहे हैं नयन।
हे भारत के बेमिसाल…………
फिर कब मिलेगा भारत को ऐसा शेर?
जिसे देखकर ही, दुश्मन हो जाए ढेर।
हे महावीर, कभी नहीं भूल पाएंगे हम,
अनंत काल तक, यूं ही चाहेगा वतन।
हे भारत के बेमिसाल…………..
प्रमाणित किया जाता है कि यह रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसका सर्वाधिकार कवि/कलमकार के पास सुरक्षित है।
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
जयनगर (मधुबनी) बिहार/
नासिक (महाराष्ट्र)