होली खेले रघुबीरा अवध में होले खेले रघुबीरा और आज बिरज में होरी रे रसिय ।
त्यौहारों पर शहर ही नहीं गांव का युवा वर्ग भी अब वाट्सऐप और यूट्यूब पर मशगूल ।
औपचारिकता निभाने के लिए लोग होली में गले तो मिलते ।
हमारी होली ऐसी तो न थी ।
होली में जीवन का राग समाहित है अब तक होली को हम जैसा भी देखते रहे हों लेकिन अब होली उदास है! उमंग और उत्साह गायब है! शायद इसे नए जमाने की नजर लग गई! नए जमाने मतलब नई सोच और नई जीवन शैली जब जीवन शैली बदल जाती है तो पर्व त्योहारों के मानने के तौर तरीके भी बदल जाते हैं! हालांकि सिर्फ होली की बात नहीं है बल्कि हर पर्व त्योहार के साथ भी कमोबेश ऐसा ही है! लेकिन अब होली को शहरीपन की नजर लग गई अब होली खेले रघुबीरा अवध में होले खेले रघुबीरा और आज बिरज में होरी रे रसिय जैसे कर्णप्रिय होली गीत सुनाई नहीं देते!अब इन पारंपरिक गीतों की जगह भौंडे और अश्लील गानों ने अपना स्थान बना लिया है होली के महीने भर पहले से ही तिपहिया और बसों में होली के नाम पर ऊंची आवाज में अश्लील गाने बजने शुरू हो जाते हैं इससे महिलाओं के लिए कहीं आना-जाना भी मुश्किल हो जाता है! होली के दिन भी अलग अलग टोलों में लोग ताश के पत्ते फेंटते दिखते हैं पूरे गांव की होली पहले टोलों फिर परिवार और अब पति पत्नी और बच्चे तक सिमट कर रह गई है! शरारती युवाओं की टोली अब जल्दी चिढ़ने वाले किसी बुजुर्ग को खोज कर उन्हें गहरे रंगों से सराबोर नहीं करती उनके गुस्से को हंसी ठहाकों में तब्दील नहीं करते शहर ही नहीं गांव का युवा वर्ग भी अब वाट्सऐप और यूट्यूब पर मशगूल है! बुजुर्ग अब बेकार की वस्तु बन गए!अब बात बात पर लोग मरने मारने पर उतारू हो जाते हैं! अब न पहले जैसी अल्हड़ मिजाजी रही और न पहले की तरह सहनशीलता! पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों में भी पहले जैसी आत्मीयता नहीं रही ! आधुनिकता के जंजीरों में जकड़ा मन अब इसकी इजाजत नहीं देता औपचारिकता निभाने के लिए लोग होली में गले तो मिलते हैं लेकिन मन नहीं मिलता और अगर किसी त्योहार में मन नहीं मिल रहा हो तो वह त्योहार कैसा? कौन सा त्योहार ऐसा होना चाहिए जो लोगों और समाज के बीच आपसी सद्भाव के संदेश नहीं देता हो? कौन ऐसा व्यक्ति होगा जो सद्भाव से रहित अकेलेपन में डूबा कोई त्योहार माना चाहेगा ? लेकिन अब बदलते वक्त के साथ ऐसा हो रहा है या फिर ऐसा होने के हालात बन रहे हैं हमारी होली ऐसी तो न थी !