स्वास्थ्य और बिहपुर

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यदि चुनावी भाषणों की बात करें तो हर चुनाव में सभी दल के नेता या नेत्री बस आम जनता को भ्रष्टाचार से मुक्ति ,भयमुक्त समाज की स्थापना ,स्वस्थ शिक्षा और उत्तम स्वास्थ्य की बात जरुर करते हैं पर जब चुनाव जीत जाते हैं तो समस्याएँ जस की तस धरी की धरी रह जाती हैं । वोट के जादूगर वोट लेकर गायब हो जाते हैं ।
आज हम बात करेंगे #बिहपुर बिहपुर में स्वास्थ्य व्यवस्था की । बिहपुर में दो बड़े सरकारी चिकित्सा केंद्र हैं । एक पशु का और एक इंसान का । अब चूँकी बिहपुर पशुपालन के लिए बड़ा लिए बड़ा क्षेत्र है और लोग दियरा क्षेत्र में महिनों पशु के साथ रहकर जीवनयापन करते हैं तो इसे नज़र अंदाज करना कतई सही नही होगा । तो पहले बात करते हैं मनुष्य चिकित्सा केंद्र की तो एक बड़ा भवन है जहाँ बेड की कमी नही है । भवन भी पर्याप्त है पर उँचे महल तो चिकित्सा कर हीं नही सकते और किसी बड़े भवन का नाम चिकित्सा केंद्र तो नही हीं सकता है । तो इस चिकित्सा केंद्र हर दिन सौ से अधीक प्रसूता एवं हज़ार से अधीक मरीज इलाज के लिए आते हैं । ये बात उलग है की दवाई के नाम बस खानापूक्ती है । खैर , अब इन मरीजों को डॉक्टर जांच करते हैं पर ड्रेसर एक भी नही हैं । प्रभारी चिकित्सक तो महीने में कभी-कभार केंद्र पर आ जाते हैं औक बस व्यवस्था पर बरस कर चले जाते हैं । हद तो ये है की प्रभारी महोदय प्रखंड के प्रतिनिधियों के द्वारा जनसममस्या के लिए बुलाई गई सभा में प्रतिनिधित्व करने के लिए किसी कर्मचारी को भेज देते हैं । खैर ,बांकी कुछ चिकित्सक ड्यूटी के नाम पर खानापूर्ती कर समय से तीन चार घंटे पूर्व घर के लिए निकल जाते हैं और जिनका ड्यूटी होता है वो महोदय दो घंटे लेट से लेट से आएँगे तो स्वभाविक है बीच का समय नर्स संभालती हैं । अब जो प्रसूता आती हैं उनकी बात करते हैं । तो बिहपुर में लगभग 12वर्ष से कोई महिला चिकित्सक आई हीं नही है । हाँ माह दो माह में एक दो जच्चा बच्चा दोनो दम तोड़ देते हैं तो थोड़े बहुत हंगामे के बाद एक दो बैठक कुछ दिशा निर्देश के नाम पर खानापूर्ती कर मामला रफा दफा जरुर हो जाता है । प्रसूता का प्रसव प्रशिक्षु नर्स के हाथों कितना अच्छा हो सकता है ये तो सबको पता है । डॉक्टरों या नर्स के रहने की व्यवस्था तो सरकार ने की नही है और ग्रमीण क्षेत्र में भाड़े पर मकान मिलना काफी मुश्किल होता है तो ऐसे में ज्यादातर नर्स #भागलपुर #नवगछिया से हीं बिहपुर आते हैं तो समस्या आम बात है ,कभी पुल जाम तो कभी कुछ ये चलता रहता है । अब बात करें पशु चिकित्सालय की तो इसके नाम पर बड़ा भवन है , दवा जीरो बटे सन्नाटा , स्टाफ जीरो के बराबर तो काम क्या होता है यहाँ सोचा जा सकता है ? हर दिन लगभग 10 पशु झोलाछाप डॉक्टर के इलाज से दम तोड़ देते हैं । दम तोड़ने से पहले बेचारे किसान इलाज के नाम मोटी रकम भी खर्च करते हैं । मतलब जान माल दोनो की हानी । पर बिहपुर के प्रतिनिधियों का इनसे कोई सरोकार नही है । कुछ लोग यदि आवाज़ उठाते भी हैं तो उनकी आवाज़ वहीं दबा दी जाती है ।
सही कहा है किसी रचनाकार ने – घर बिना छत बनाए जाएँगे ,लोग उसमें भी बसाए जाएँगे ,हम तो बस बेबस जनता हैं ,बस शूली चढाए जाएँगे ।
(अगले आलेख में बिहपुर प्राईवेट/सरकारी शिक्षा व्यवस्था )

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