सुखद भोर वन्दन
नव दुर्गा की नव सुबह नव संवत्सर सजा रही है
शेरोवाली माँ अम्बिके करुणा सब पे बरसा रही है ।
शीत किरण में झूम फिजाएं भक्ति रस बरसा रही है
मीठी वाणी पँछी चहके कोयल राग लुभा रही है।
खिली फूलों की वाहिया आनन्द उमंग जगा रही है
प्रभात नमन कहने को फिर शोभा पटल पर आ रही है
प्रथम प्रणाम आत्मजा को कर गुरु चरण पखार रही है।
ईश्वर की कर वंदना पुनः प्रिय परिजन वन्दन गा रही है।
मित्र रिपु सबके हित प्रभु से नेह भाव कर हरसा रही है
सूर्य,चंद्र नव लख तारो की उपमाएँ सुना रही है।
कर आभार प्रकृति का सुखद अनुभव पा रही है
ले आशीष सभी का पुनः नित्य कर्म हित जा रही है।
तुम भी जागो हे जन मानस जीवन सुधा जगा रही है
आलस त्यागो कहो प्रणाम कर्तव्य राह तुम्हे बुला रही है।
शोभा सोनी