लघु कथा
अरे ऋतू दी !आप अभी तक तैयार नहीं हुई,चलिए न जल्दी से तैयार हो जाइये
मंदिर चलना है ,और हां मांजी ने कहा है पूरे सुलह श्रृंगार करने है,मैं
तो जा रही हूँ दीदी आज पूजा में इनके साथ बैठना है और तैयार होना है ,आप
आ जाइये जल्दी से नीचे।
अंजलि अपनी ननद ऋतू को बोल उत्साह से चली जाती है।
ऋतू यादों में खो जाती है , कैसे पिछले वर्ष सावन में अपने पति मनीष के
साथ शिव पार्वती की पूजा में पूरे सोलह श्रृंगार करके बैठी थी ,आखिर
पहला सावन था उसका।
मनीष की नज़रे तो जैसे ऋतू से हट ही नहीं रही थी।
क्या बात है ऋतू आज तो तुम फिर से दुल्हन लग रही हो।
यादों के समन्दर में खोई ऋतू ने जब माँ की आवाज़ सुनी तो जैसे सपने से
जगी हो प्रतीत हुआ।
मनीष को अचानक व्यापार में काफी नुक्सान के चलते ,अपने देश को छोड़
विदेश जाना पड़ गया ,और ऋतू कुछ समय बाद मायके आ गई ,अपना अकेलापन दूर
करने
पर आज सावन में हर सुहागन जब पूरे सोलह श्रृंगार कर अपने पति के साथ पूजा
करने को उत्साहित है ,उसका मन ठहर सा गया।
माँ ने प्यार से दुलारते कहा बिटिया ,तुम तैयार तो हो जाओ क्या हुआ मनीष
यहाँ नहीं ,ऋतू बोझिल से मन लिए आज तैयार हुई मन ही मन माँ पार्वती से
प्रार्थना करने लगी की मेरा सुहाग मेरे साथ हो आज। और जब तैयार हो मंदिर
पहुँचती है तो सामने मनीष को पाकर जैसे उसे विश्वास ही ना हुआ ,अरे! आप
यहाँ कैसे ?
सरप्राइज़ !के साथ सबके ठहाके गूंजते है।
अंजलि-दीदी जीजाजी कल शाम ही आ गए,हम सब से आपसे छुपाया ये उनका प्लान
था। ऋतू की आँखों में आंसू और चेहरे पर मुस्कान,धीरे से मनीष ने पास आकर
कहा
प्रिय तुम्हे में सोलह शृंगार में दुल्हन के रूप में देखना चाहता था इतने
दिनों बाद ,
शिवजी और पार्वती मैया के आशीर्वाद से अब सब ठीक हो जाएगा
चलो अब पूजा करते हैं।
नंदिनी लहेजा
रायपुर(छत्तीसगढ़)