अट्टहास करता हुआ रावण
धू धू कर जलने लगा
जलते जलते वह लोगों से
एक सवाल करने लगा
मैं प्रकांड विद्वान मनीषी
इन्द्रजाल का था ज्ञाता
तंत्र मंत्र सम्मोहन से
सीता को मैं पा जाता
मेरे अन्दर थी वासना
पर मुझमें संयम भी था
बिना सहमति स्पर्श न करूंगा
मन में यह संकल्प भी था
मुझको मिली मृत्यु दंड थी
जब मैंने केवल अपहरण किया
उसकी क्या सजा होगी जो
वहशीपन का वरण किया
सब कहते दसानन मुझको
लेकिन उनसे मैं हूँ अच्छा
सब चेहरे मैं बाहर रखता
अन्दर से भी हूँ सच्चा
सीता को जंगल में रखा
फिर भी वह सुरक्षित रही
आज बहन बेटीयों की पीड़ा
वह घर पर भी सुरक्षित नहीं
मन के दैत्य का संहार करें
पुतला दहन से क्या होगा
आतंकी रावण का दहन करें
श्री राम को फिर आना होगा
रश्मि श्रीवास्तव सुकून
दुर्ग छत्तीसगढ़