श्रम ही मेरी पूजा है,
मेहनत मेरा ईमान।
श्रम ही मेरा धर्म है।
श्रम बिंदु मेरी पहिचान।।
श्रम ही मेरी गीता है।
श्रम ही मेरी रामायण।
श्रम देवता का ही नित,
करता हूं मैं आराधन।।
होता हूं मैं पावन नित,
श्रम बिंदु से करके स्नान।
“श्रमेव जयते “का नारा,
श्रम की महिमा है महान।।
खेत खलिहान कारखाने।
मुझसे है इनकी मुस्कान।
मेरे बिना न चलता काम।
जाने महिमा सकल जहान।
सदियों से होता आया,
श्रमिकों के श्रम का शोषण।
खुद भूखा रह जाता है,
करता सबका जो पोषण।।
सुन लो दुनिया के लोगों।
श्रम का तुम करो सम्मान।
श्रम के बिना विकास नहीं,
बिन श्रम ‘प्यारे’नहिं कल्याण।।
प्यारेलाल साहू मरौद छत्तीसगढ़