शिकायत

नर कहता है ऐ जीवनतूने हमें दिया ही क्या ?घिसी- पिटी ज़िन्दगी दीनिरसता तो भरी-भरी हैफूल साथ काँटे भी दीचिंता साथ लगा ही दीआशा तृष्णा में जकड़े हैलोभ लालच के बेड़ी पड़ेअसह्य दुख हर तरफ हैपीड़ा -पीड़ा उफ! पीड़ाक्या पीड़ा से संसार बनीऐसी ज़िन्दगी क्यों बनी हैजीवन तूने सजा ही दी हैरे मानव गहराई से…

डॉ.इन्दु कुमारी

नर कहता है ऐ जीवन
तूने हमें दिया ही क्या ?
घिसी- पिटी ज़िन्दगी दी
निरसता तो भरी-भरी है
फूल साथ काँटे भी दी
चिंता साथ लगा ही दी
आशा तृष्णा में जकड़े है
लोभ लालच के बेड़ी पड़े
असह्य दुख हर तरफ है
पीड़ा -पीड़ा उफ! पीड़ा
क्या पीड़ा से संसार बनी
ऐसी ज़िन्दगी क्यों बनी है
जीवन तूने सजा ही दी है
रे मानव गहराई से सोच
निरस में सरस रसोस्वान
क्षीरसागर सा तेरा जीवन
गरल सुधा नजरिया मंथन
सुख- दुख नहीं रे क्रंदन
अनुभूति भव भय भंजन
मोक्ष का द्वार मनुज तन
पीड़ा राहों का अवलंबन
प्रयत्न हमारा हो आधार
भवसागर हो जाए पार।
डॉ इन्दु कुमारी
मधेपुरा बिहार

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