यादों का घरौंदा

यादों के घरोंदे में, अपनों का साथ था प्यारा।रहता था जब मिल जुलकर, इक साथ परिवार हमारा।दादा दादी,माँ पापा,चाचा चाची ,बुआ और हम बहन भाई।धूम मचा देते थे हर त्यौहार में,कितनी होली,दिवाली आयी।दादू,दादी के संग जाता था बागीचे,जब में छोटा बालक था।सुनता था दादी से कहानी ,जब उनके गोद में सर रख सोता था।हम सब…

यादों के घरोंदे में, अपनों का साथ था प्यारा।
रहता था जब मिल जुलकर, इक साथ परिवार हमारा।
दादा दादी,माँ पापा,चाचा चाची ,बुआ और हम बहन भाई।
धूम मचा देते थे हर त्यौहार में,कितनी होली,दिवाली आयी।
दादू,दादी के संग जाता था बागीचे,जब में छोटा बालक था।
सुनता था दादी से कहानी ,जब उनके गोद में सर रख सोता था।
हम सब थे भाई बहन कोई चचेरे,फुफेरे का भेद न था।
लड़ते थे ,संग खेलते थे,प्रेम था हम में बड़ा गहरा।
यादों का घरोंदा मेरा, रिश्तों से था हरा भरा।
आज भी सहेजा उसको, मन के इक कोने में हैं।
बदलते समय के संग, छूटे अनेकों रिश्ते मेरे।
पर आज बन यादें सुनहरी,दिल के मेरे करीब हैं।

नंदिनी लहेजा
रायपुर(छत्तीसगढ़)
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

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