यथार्थ सत्य।

हे देवी! मैं मिथिला नगरी का एक अज्ञानी तुच्छ बालक आपसे हाथ जोड़कर क्षमा याचना करता हूं एवं साथ ही साथ एक प्रश्न भी पूछना चाहता हूं कि जनक नंदिनी,मिथिला नगरी ( बिहार )की सुपुत्री एवं मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम(राजा दशरथ के सुपुत्र एवं अयोध्या वासी,यूपी) की शक्ति स्वरूपा,अर्धांगिनी एवं हमलोगों की सीता मां को…

हे देवी! मैं मिथिला नगरी का एक अज्ञानी तुच्छ बालक आपसे हाथ जोड़कर क्षमा याचना करता हूं एवं साथ ही साथ एक प्रश्न भी पूछना चाहता हूं कि जनक नंदिनी,मिथिला नगरी ( बिहार )की सुपुत्री एवं मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम(राजा दशरथ के सुपुत्र एवं अयोध्या वासी,यूपी) की शक्ति स्वरूपा,अर्धांगिनी एवं हमलोगों की सीता मां को मिथिला नगरी से प्रसन्नता पूर्वक विदा किया एवं अयोध्या नगरी की महारानी बनी।
जो आदिशक्ति मां जगदम्बा की अवतार एवं चरित्रवान होते हुए भी न जाने उन्हें अपनी चरित्र की कितनी अग्नि परीक्षा देनी पड़ी। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम तो स्वयं नारायण के अवतार थे।वे तो अंतर्यामी थे। किसी प्रजा के बातों में आकर मिथिला नगरी एवं जनक नंदिनी सीता मैया के हृदय में कितना चोट पहुंचाई?
एक चरित्रवान पर कोई भूल से भी उनके चरित्र पर दाग लगा दे तो आख़िर उनके दिल पर क्या बीती होंगी? वे तो जीते जी मृत्यु शय्या पर विराजमान होने के समतुल्य है। सर्वप्रथम एक पतिव्रता नारी होने के नाते अपने स्वामी मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के चरणों में चौदह वर्ष वनों में व्यतीत कीं एवं लंकापति रावण के द्वारा अपहरण भी की गई। जो स्वयं कोमल विश्व सुंदरी राजा जनक की राजकुमारी थीं। जो कभी भी नंगे पांव नहीं चलीं होंगी। जिनको कभी भी भौतिक सुखों की कमी न हो। परंतु एक पतिव्रता स्त्री होने के नाते स्वामी के सेवा में चौबीस घंटे तत्पर एवं अग्नि के सात फेरे में साक्षी मानकर अपने स्वामी को सुख व दुख में भी साथ देने की कसमें खाईं एवं जीवन भर अपने वचनों को पूरी तन्मयता से निभाईं। घनघोर वनों में क्रुर असुरों का सामना करना पड़ा।कंद,मूल,फल- फूल खाकर एवं उसी में संतोषजनक जीवन व्यतीत कीं हमारी जनक नंदिनी सीता मैया।
आख़िर उन्होंने क्या बिगाड़ी थीं? उन्हें किस पूर्व जन्मों से दंडित हुईं? क्या एक चरित्रवान स्त्री की समाज में दूसरे लोगों के द्वारा कही हुई आरोपों से वे कब तक शारीरिक एवं मानसिक रूप से पीड़ाएं सहती होंगी? माना कि प्रकृति समस्त जीवों में स्त्री को सहन शक्ति अधिक देते हैं। पर उस सहन शक्ति की भी तो एक निश्चित सीमा और क्षमता है। आख़िर वो कब तक नारी अबला बनती रहेंगी? कहते हैं कि एक स्त्री का दर्द एक स्त्री ही भलीभांति समझती हैं चाहे वो कहीं का ही क्यों न रहे।
मिथिला नगरी ( बिहार ) की सुपुत्री की दर्द एवं पीड़ाएं अयोध्या नगरी ( उत्तर प्रदेश ) की स्त्रियां क्यों नहीं समझीं? क्या वे मात्र स्थूल शरीर से स्त्री थीं परंतु विचारों से कुछ और?
जो भी हुआ पर उनके साथ बहुत ही ग़लत हुआ।
जब उनको चरित्र की अग्नि की परीक्षा में कोई न्याय नहीं दिला सका और ना ही वहां की प्रजा ने माना तो फ़िर आज़ के स्त्रियों के साथ क्या होगा?
अपनी व्याख्यान दें।🙏

प्रकाश राय ✍️
क़लमकार एवं आलोचक
मिथिलांचल, बिहार 🌹

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