बड़ी तेजी से उस के कदम घर की तरफ बढ़ रहेथे ।फिल्म ‘रघुवंशम्’देख कर घर लौट रहा था अमन।बहुत खुश था वह फिल्म देख कर ।उस के पात्र ‘हीरा ‘की जगह अपने को रखता हुआ आसमान मुट्ठी में करने की रास्ते भर सोचता रहा वह।रघुवंशम् का हीरा सचमुच का हीरा था।प्रताड़ित घर से निष्कासित हीरा अपने मेहनत और लगन से अपने लक्ष्य को हासिल करने में सफल सिद्ध हुआ ।तेज कदम घर की तरफ बढ़ाता हुआ अमन हीरा और उस की कलेक्टर पत्नी की कामयाबी में खोता जा रहा था ।हीरा अब उस का रोल मॉडल बन गया था ।
घर आकर उस ने सुमी को बांहों में भर लिया था ।पत्नी की नजरें प्रश्न वाचक थीं ।लेकिन उस की खुशी उस के चेहरे पर दमक रही थी ।
चाय लेते हुए सुमी से उस ने कहा था-
‘अब तुम्हारा यह सब बंद ।अब मैं तुम्हें चाय बना कर पिलाउंगा’।
वह सिर्फ उस की बहकी- बहकी बातों को सुन रही थी ।वह समझ रही थी कि शायद किसी दोस्त ने भांग की शर्वत पिला दी होगी या कहीं किसी डाॅक्टर के साथ दो- चार पैग ले लिया होगा इसलिए ये ऐसी बहकी- बहकी बातें कर रहे हैं ।लेकिन नहीं ।आज वह सचमुच बहुत खुश था और गंभीर भी ।उस ने सुमी को अपने पास सोफा पर बैठा लिया ।फिल्म ‘रघुवंशम् ‘के मुख्य पात्र हीरा और उस की कलेक्टर पत्नी की कामयाबी की कहानी सुनाई।फिर से एक बार मेडिकल केलिए प्रयास करने का अपना मंतव्य भी सुना डाला ।सुनकर आश्चर्य चकित रह गई थी सुमी ।
‘वह सिनेमा है सिनेमा ।एक काल्पनिक दुनिया ।सिनेमा में जो होता है वह रियल जिंदगी में किसी भी प्रकार संभव नहीं ।वास्तविकता के गरम हवा के झोंकौं से ताश के महल की तरह विखर जाते हैं अमन ।थोड़ा समझा करो ।’
उस ने अमन को समझाने का प्रयास किया ।
लेकिन आज वह तो धरातल पर था ही नहीं ।वह बार-बार सुमी को ही समझने की नसीहत दे रहा था ।प्लीज -प्लीज कर रहा था ।
“हमलोगों को सफलता हाथ क्यों नहीं लगी? समझा सकते हो क्या? क्लर्क की नौकरी भी नहीं ले पाए।तुम चाहते हो कि मैं फिर से मेडिकल केलिए प्रयास करूँ? वैसे भी अब हमारी पात्रता भी समाप्त हो गई होगी नीट क्वालिफाई करने के लिए “।सुमी ने भी प्रति प्रश्न करना जारी रखा ।खैर छोड़ो इन फिजूल की बातों को ।आकाश कुसुम को।तुम्हें नाईट भीजिट के लिए जाना हो तो बैग उठाओ और चलते बनो ।तुम्हारे बक-बक में बहुत समय जाया हो गया ।हमें अभी बहुत काम निपटाने हैं ।
नहीं सुमन अभी तुम्हारे पास दो साल का समय शेष है ।सिर्फ एक बार केलिए मेरी बात मान लो, प्लीज ।तुम्हें मेरी कसम, सुमी ,प्लीज ।चाय-नाश्ता, खाना,बर्तन,झाड़ू सब मैं कर दूँगा ।तुम्हें सिर्फ पढ़ाई करनी है ।
अमन बड़ी अधीरता से उसे समझा रहा था ।
‘और नौकरी- -‘सुमन ने टोका
‘वह भी मैं कर लुंगा ।मैं सब कुछ मैनेज कर लुंगा ।सिर्फ एक बार मेरी बात मान लो, प्लीज ।’
सोच में पड़ गई थी सुमी ।’अच्छा देखती हूँ ‘।कहकर दूसरे रूम में चली गई थी वह।
सुमन और अमन मेड़िकल कोचिंग सेंटर ‘आकाश’में एक साथ पढ़ते थे ।लम्बे समय तक साथ पढ़ते हुए, नोट्स आदि के आदान प्रदान से और सबजैक्ट डिस्कशन में कब प्यार हो गया पता ही नहीं चला ।कई एग्जाम देने के बावजूद दोनों के हाथ खाली ही रहे ।फिर उकताहट में दोनों ने बैंक आदि के क्लर्क ग्रेड की परीक्षा भी दी लेकिन ढाक के वही तीन पात।घर में भी असहयोग का वातावरण बनता जा रहा था ।इतना सब कुछ होने के बावजूद दोनों के प्यार में कोई कमी नहीं आई थी ।पारिवारिक सहमति के बाद दोनों प्रणय सूत्र में बंध गए थे ।
अमन ने मेड़िकल रिप्रजेंटेटीभ की नौकरी ज्वाइन कर ली थी ।सुमी ने घर संभाल लिया था ।जिंदगी मजे से चल रहा था कि हीरा ने इंट्री मार कर इन दोनों की शांत जिंदगी में भूचाल ला दिया था आज।अंत्तोगत्वा सुमन ने हथियार डाल ही दिया ।उस ने अपनी पुरानी पुस्तकों को झाड़ना- पोछना शुरू कर दिया ।जहाँ- तहाँ पड़े बिखरे नोट्स को भी झाड़ पोछ कर करीने से बेडरूम में लगाया ।बेडरूम अब बेडरूम कम स्टडीरूम ज्यादा लगने लगा था ।खुश हो गया था अमन अपनी जीत पर ।वह भी डाॅक्टरों से मांग कर पुस्तकें उपलब्ध कराता ।सजेशन भी जहाँ तहाँ से उपर करता ।बाजार से पूछ-पूछकर नोट्स खरीद लाता।
सुमन के सोने के घंटे भी अब कम होते जा रहेथे ।वह भी भरपूर प्रयास कर रही थी ।अमन भी सोते से उठ-उठ कर उस के लिए चाय बना कर फ्लाश्क में भरता रहता ।कभी- कभी तो उसे दया आ जाती ।गुस्सा भी आता अपने आप पर ।सुमन को आराम करने की सलाह भी देता ।लेकिन सुमन को तो भूत सबार हो गया था सफलता का ।।
एग्जाम के समय अमन छुट्टी लेकर साथ खड़ा रहा ।आज दोनों खुशी से चहक पड़े थे रिजल्ट देखकर ।अमन ने कई बार आंखें मल मलकर देखा लेकिन बास्तविकता उसी के पक्ष में साथ खड़ा था ।आंखें भर आई थी उसकी ।जिंदगी का नया सवेरा उस के स्वागत के लिए पलक फावड़े बिछाए खड़ा था।कौंसेलिंग में पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल मिला था उस को ।
अमन भी साथ रहने केलिए पटना ट्रासफर लेना चाहता था ।संभब नहीं हो पाया ।सुमन होस्टल में रहने लगी थी ।शुरू- शुरू में अमन के बिना अच्छा नहीं लगता था उसे ।अपने अकेले होने का हबाला देकर पढ़ाई छोड़ देने की बात सुमन करने लगी थी ।अमन उस की मेहनत और उज्ज्वल भविष्य की तरफ इशारा करते हुए उसे समझाता रहता ।हर सप्ताह छुट्टी होते ही सुवह की गाड़ी से चला जाता ।दिन भर साथ रहकर शाम को अपने हेड़क्वाटर लौट आता ।यह रूटिन प्रथम साल तक तो चलता रहा ।फिर दोनों धीरे- धीरे अकेले रहने के अभ्यस्त होने लगे।सुमन ने पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करना आरंभ कर दिया था ।दूसरे साल के समापन तक सुमन अमन को धीरे धीरे भुलने लगी थी ।लेकिन अमन उस के खाते में नियमित रकम डालता रहा ।गाहे-बेगाहे फोन पर मन लगा कर पढ़ने की नसीहत देना भी नहीं भूलता ।सुमन के रिजल्ट और सिंसियरीटी देखकर साथी ही नहीं व्लकि प्रोफेसर भी उस के तारीफ करते ।
उसके खर्चे बढ़ने लगे थे ।वह तो अमन की आर्थिक स्थिति से वाकिफ थी ही ।पता नहीं कैसे उसने साथी वरूण से अपनी विकट आर्थिक स्थिति की चर्चा कर दी।वरूण सुमन से पहले ही बहुत प्रभावित था ।अब तो वह कोई भी मौका मदद करने का जाया नहीं करता ।सुमन के करीब आने का मौका तलाशता रहता ।सुमन के मना करने पर हस कर ,बाद में उधार चुका देने की बात कर बात को टाल देता ।
अमन में उस की दिलचस्पी निरंतर कम से कम होती जा रहीथी ।अलबत्ता वह फोन भी रिसीब नहीं करती या फिर पढ़ाई का बहाना बना कर जल्दी से फोन डिस्कनेक्ट कर देती ।दोनों के बीच खाई चौड़ी होती जा रही थी ।
वेचारा अमन पढ़ाई को लेकर फोन करना भी लगभग बंद कर दिया था।
अमन और वरूण, दो नाम सुमन की जिंदगी में शामिल हो गए थे ।भूत और भविष्य के दोराहे पर खड़ी थी वह ।वरूण में अपना भविष्य नजर आने लगा था ।वह निरंतर उस के तरफ झुकती चली जा रही थी ।इंटर्नशिप में भी वरूण ने बहुत हेल्प किया था उस का।
मौका देखकर एक दिन प्रपोज्ड किया था वरूण ने ।मौन सहमति थी सुमी की ।लेकिन अमन बीच रास्ते खड़ा था।तलाक ही एकमात्र विकल्प था।
आज स्पीड पोस्ट से तलाक के मिले कागजात को पाकर अमन खूब रोया था।बार-बार याद आ रहा था सुमी के ही कहे शव्द ।
उजड़ गया था चमन उसके ही हाथों, जिसे चमन को आवाद करने की जिम्मेदारी थी ।मोहभंग हो गया था आज उस का ।
कहानी-मोहभंग
अशोक वर्मा
भीखनपुर, भागलपुर
812001
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