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अष्टदिवस नव रूपों में माता प्रकटरूप गौरवर्ण में
कालरात्रि कालिका स्नाती दिव्य प्रकाशित वर्ण में।
माता कालरात्रि कर स्नान रूप निखरा महागौरी है
कर सोलह शृंगार तेज़ दिव्यरूप छवि सोहे शौरी है।
असुर दलन संहारक माता तमस औ पाप नाशी है
रिपु महिषासुरमर्दिनी कपालशक्ति मां अविनाशी है।
जय अंबे गौरी जगजननी जय मां नव रूप लिया है,
सृष्टि सृजन संवाहक बनकर ममता संतान खिला है।
शक्तिपुंज बनके आयी मां करती वृषभ असवारी से
भक्त जन करें वंदना चुनरी पुष्प अर्पित मनुहारी से।
कर पूर्ण मनोरथ नव निधि सकल सिद्धि शिवरानी,
शक्ति भवानी रिपुमर्दन शेरावाली अखंड महारानी।
प्रकृतिस्वरूपा आदिशक्ति सुखसमृद्धि सुयश धात्री
जीवन प्रकाश मिटे तम हरण स्नात गंगा कालरात्रि
मां सुखदा वरदानी करूणाशाली जगजीवन वर दे,
रोग शोक पीड़ा दुख संकटमुक्ति विपदा सब हर ले।
मौलिक लेखन ✍️🙏
के एल महोबिया अमरकंटक
जिला अनूपपुर मध्यप्रदेश