मां

मां जननी है, जन्मभूमि है,मां ही सृष्टि आधार है,ममता,करुणा का रक्त पिलाकरदेती पोषाहार है,शब्दों रिश्तों का ज्ञान कराती,मां ही प्रथम गुरु पाठशाला,ब्रह्मा विष्णु और महेश को,मां ने ही शिशु रूप दिया,देवों की शक्ति बनकर,असुरों का संहार किया,नारी शक्ति में रची बसी,अद्भुत कीर्ति महान हो,दुर्गा, काली और सरस्वती का ज्ञान हो,मां तुम समाहित विविध रूपों में,सृष्टि…

पीयूष राजा

मां जननी है, जन्मभूमि है,
मां ही सृष्टि आधार है,
ममता,करुणा का रक्त पिलाकर
देती पोषाहार है,
शब्दों रिश्तों का ज्ञान कराती,
मां ही प्रथम गुरु पाठशाला,
ब्रह्मा विष्णु और महेश को,
मां ने ही शिशु रूप दिया,
देवों की शक्ति बनकर,
असुरों का संहार किया,
नारी शक्ति में रची बसी,
अद्भुत कीर्ति महान हो,
दुर्गा, काली और सरस्वती का ज्ञान हो,
मां तुम समाहित विविध रूपों में,
सृष्टि का विधान हो,
वसुंधरा बन हर भार उठाती,
रोते बच्चों की मुस्कान हो,
भटके पथिकों को राह दिखाती,
मंजिल की पहचान हो,
मुझे नया जीवन देकर,
मेरा अनुपम आधार हो,
तेरी ममता का मोल चुकाना,
बड़ा कठिन व्यवहार है,
देव मनुज और दानव सब पर,
मां की ममता की दुलार है,
ममता से ही रचा बसा,
संपूर्ण सृष्टि विस्तार है,
मां ने जिसको गले लगाया,
उसका बेड़ा पार है,
मां की ममता सबसे ऊपर,
देती प्राण संचार है,
बीज को पौधा बनने तक,
सहती कष्ट अपार है!

रचना मौलिक स्वरचित
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
©पीयूष राजा
युवा साहित्यकार, शोधार्थी, नवादा, बिहार

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