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मन के भाव

पूनम सिंह

 

मैं नित नई एक कविता लिखती हूं,
अपने मन के भाव लिखती हूं ।
ना तारीफ की आशा रखती हूं,
ना वाह वाह की आशा रखती हूं,
मैं नित नई एक कविता लिखती हूं।
ना मैं पुरस्कार पाने की चाहत रखती हूं,
ना मैं सम्मान पाने की चाहत रखती हूं, गर किस्मत से कुछ मिल गया , उसमें ही संतुष्ट रहना चाहती हूं
मैं नित नई एक कविता लिखती हूं ।
ना मैं प्रसिद्ध बनना चाहती हूं,
ना मैं ख्याति प्राप्त करना चाहती हूं
बस चाहत है इतनी मैं सबों के दिल में रहना चाहती हूं ,
मैं नित नई एक कविता लिखती हूं।
जब भी किसी को दुःख में देखूं,
जब भी किसी को सुख में देखूं,
मैं नित नई एक कविता लिखती हूं।
मैं लिखती हूं हर रोज पर मैं लेखिका नही हूं ,
ईश्वर की संतान हूं मैं एक साधारण इंसान हूं।
मैं नित नई एक कविता लिखती हूं।
मैं अपने लेखनी से बहुत प्यार करती हूं,
शब्दों को सहेजती हूं ,
अपने मन के भावों में पिरोती हूं, हर्षित हो गुनगुनाती हूं , खुश रहती हूं,
अपने मन के भाव लिखती हूं,
मैं नित नई एक कविता लिखती हूं ।

✍️ पूनम सिंह
वायु सेना नगर नागपुर (महाराष्ट्र)
स्वरचित (मौलिक) रचना

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