( 10 मई 1857 की क्रांति के महानायक क्रांतिकारी देशभक्त मंगल पांडे जी को समर्पित )
आओ सुनाऊ एक कहानी ,
उस अमर बलिदानी की ।
भारत माँ का वीर सिपाही ,
मंगलपांडे स्वाभिमानी की ।।
चर्बी लगे कारतूस से जिसका , स्वाभिमान डिगडोला था ।
धर्म और स्वाभिमान की खातिर ,
रँगा बसन्ती चोला था ।।
जाग उठा था शेर उस दिन,
उसने हुँकार लगाई थी ।
देख उसकी लाल आखों को ,
अंग्रेजी हुकूमत घबराई थी ।।
सन 1857 की क्रांति का ,
वह बना महानायक था ।
भारत में स्वराज का उसने ,
किया युद्ध निर्णायक था ।।
मंगलपांडे नाम था उसका ,
शेर बनकर दहाड़ा था ।
अंग्रेजी सत्ता का जिसने ,
ध्वज जमी से उखाड़ा था ।।
चीर दिया था फाड़ दिया था ,
गोरो की अधर्मी वर्दी को ।
ओढ़ लिया था उस दिन उसने ,
स्वाभिमान की चादर को ।।
इक सच्चे सपूत का उसने ,
अपना धर्म निभाया था ।
माँ भारत की आजादी का ,
गदर बिगुल बजाया था ।।
झूल गया फाँसी पर लेकिन ,
अधर्म के आगे झुका नही ।
सन सत्तावन का तूफान ,
फिर अंग्रेजो से रुका नहीँ ।।
उमड़ उठा था घुमड़ उठा था ,
लावा सबके तन मन में ।
फूक दिया था मन्त्र स्वराज का ,
भारत के हर एक जन में ।।
संदीप कुमार जैन”नवोदित”
ककोड़,उनियारा, टोंक