प्राचीन भारत के इतिहास में भागलपुर ( BHAGALPUR )को अंग क्षेत्र कहा जाता था। इसका महाभारतकालीन इतिहास भी रहा है। ब्रिटिश हुकूमत में इसे जिले के रूप में स्थापित किया गया तो इसका क्षेत्रफल संथालपरगना (वर्तमान में झारखंड का हिस्सा) से लेकर पश्चिम बंगाल तक था। यह शहर व्यापार का बड़ा केंद्र था और यहीं से होकर कोलकाता के लिए जहाज चला करते थे।
सिल्क, आम और कतरनी चावल के लिए मशहूर
भागलपुर सिल्क (SILK CITY BHAGALPUR ) के कपड़ों, जर्दालु आम और कतरनी चावल व चूड़ा के लिए मशहूर है। 1980 के दशक का अंखफोड़वा कांड हो या दंगा, कुछ अप्रिय घटनाओं ने इसके दामन पर दाग भी लगाए। हालांकि, वक्त के साथ यह इन सबसे काफी आगे निकलकर सांप्रदायिक सौहार्द के रूप में प्रतिष्ठापित हो चुका है।
पौराणिक पक्षी गरुड़
पौराणिक पक्षी गरुड़ से जुड़े सारस परिवार के एक सदस्य, ग्रेटर एडजुटेंट ( लेप्टोपिलोस डबियस ) के पास भागलपुर में स्थित एक बचाव और पुनर्वास क्षेत्र है, जो अपनी तरह का दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है। शिकार और अंडे के संग्रह के साथ जल निकासी, प्रदूषण और गड़बड़ी के माध्यम से घोंसले के आवास और भोजन स्थलों के नुकसान ने प्रजातियों की आबादी में भारी गिरावट का कारण बना। गरुड़ पक्षियों को पहली बार 2007 में भागलपुर में गंगा -दियारा क्षेत्र के एक गाँव के पास एक रेशमी कपास के पेड़ पर घोंसला बनाते और प्रजनन करते हुए देखा गया था। मई 2006 में, मंदार नेचर क्लब टीम द्वारा पहली बार 42 पक्षियों को देखा गया था। इससे पहले यह प्रजाति बिहार में कभी नहीं देखी गई थीइसके प्रजनन काल के दौरान। सारस परिवार के इन लुप्तप्राय पक्षियों के भागलपुर जिले में घोंसला बनाने और प्रजनन शुरू करने के चार साल बाद , उनकी संख्या अंततः 78 से बढ़कर 500 से अधिक हो गई, भागलपुर को गरुड़ की मेजबानी के लिए केवल तीन स्थानों में से एक बना दिया; अन्य कंबोडिया और असम हैं।
ग्रेटर एडजुटेंट को संकटग्रस्त प्रजातियों की IUCN रेड लिस्ट 2004 में लुप्तप्राय के रूप में वर्गीकृत किया गया है और भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची IV के तहत सूचीबद्ध किया गया है। इस विशाल सारस का नग्न गुलाबी सिर, बहुत मोटा पीला बिल और कम- लटकती हुई गर्दन की थैली। गर्दन रफ सफेद है। पक्षी गिद्ध की तरह दिखता है। प्रत्येक पंख पर हल्के भूरे रंग के किनारे के अलावा, शेष बड़े सहायक का शरीर गहरा भूरा होता है। युवा बच्चों के पास एक संकरा बिल होता है, सिर और गर्दन पर मोटा होता है, और पूरी तरह से काले पंख होते हैं। एक गरुड़ पक्षी की लंबाई 145-150 सेमी (लगभग तीन फीट) और ऊंचाई चार से पांच फीट होती है।
सेंट बेनेडिक्ट चर्च
गॉथिक वास्तुकला वाला चर्च शहर के केंद्र में स्थित है। इसने बेहतरीन वास्तुकला का उपयोग किया है और इस क्षेत्र के सबसे लोकप्रिय चर्चों में से एक के रूप में सामने आया है। चर्च का आंतरिक और बाहरी डिजाइन शाश्वत आनंद है। क्रिसमस और ईस्टर के दौरान, चर्च और पूरे कोर्ट क्षेत्र को रानी की तरह सजाया जाता है।
श्री चंपापुर दिगंबर जैन मंदिर
भगवान वासुपूज्य की सबसे ऊंची प्रतिमा, चंपापुरी
चंपापुर जैन धर्म का एक प्राचीन और ऐतिहासिक तीर्थ क्षेत्र है । चंपापुर वह स्थान है जहां भगवान वासुपूज्य , 12 वें जैन तीर्थंकर के सभी पांच कल्याणक यानी गर्भ, जन्म, तप, केवलज्ञान और मोक्ष कल्याणक हुए हैं। चंपापुर ‘ अंग जनपद’ की राजधानी थी । अंग जनपद आदि तीर्थंकर भगवान ऋषभ देव द्वारा स्थापित 52 जनपदों में से एक था । चंपापुर भगवान महावीर स्वामी के समय के छह महाजनपदों में महाजनपद के रूप में भी मौजूद था ।
चंपापुर में भगवान महावीर स्वामी के दीक्षाकाल के दौरान अंग – बंगा – मगध – वैशाली के धार्मिक प्रचार केंद्र , सती सुभद्रा और अनंतमती की विनय परीक्षा, भगवान महावीर स्वामी के लिए आहरदान के तीन चातुर्मास चंपापुर में हुए हैं। चंपापुर ‘हरिवंश की उत्पत्ति, श्रीपाल-मैनसुंदरी, श्री धर्म घोष मुनि, महाभारत के राजा कर्ण , राजा मुद्रक और महान वास्तुकार विश्वकर्मन ‘ की महान कहानियों से भी संबंधित है।
चंपापुर सिद्धक्षेत्र का मुख्य मंदिर काफी प्राचीन (लगभग 2500 वर्ष) है। ‘पंच कल्याणक’ का प्रतीक होने के कारण यह मंदिर 5 वेदियों, भव्य शिखर और 2 स्तम्भों से सुशोभित है। ऐसा कहा जाता है कि 4 ‘कॉलम ऑफ फेम (कीर्ति स्तम्भ)’ थे जो मंदिर के परिसर के चारों कोनों में मौजूद थे। बाद में 1934 के भूकंप में 4 में से 2 नष्ट हो गए और अन्य 2 स्तंभों की मरम्मत (जिरनोधर) 1938 में की गई। ‘कॉलम ऑफ फेम’ लगभग 2200 साल पुराने हैं।
विश्वविद्याल (UNIVERCITY)
प्राचीन काल के तीन प्रमुख विश्वविद्यालयों यथा तक्षशिला, नालन्दा और विक्रमशिला में से एक विश्वविद्यालय भागलपुर में ही था जिसे हम विक्रमशिला के नाम से जानते हैं। पुराणों में वर्णित समुद्र मंथन में प्रयुक्त मथान अर्थात मंदराचल तथा मथानी में लपेटने के लिए जो रस्सा प्रयोग किया गया था वह दोनों ही उपकरण यहाँ विद्यमान हैं और आज इनका नाम तीर्थस्थलों के रूप में है ये हैं बासुकीनाथ और
मंदार पर्वत।
पवित्र् गंगा नदी को जाह्नवी के नाम से भी जाना जाता है। जिस स्थान पर गंगा को यह नाम दिया गया उसे अजगैवी नाथ कहा जाता है यह तीर्थ भी भागलपुर में ही है।
इतिहास
बीते समय में भागलपुर भारत के दस बेहतरीन शहरों में से एक था। आज का भागलपुर सिल्क नगरी के रूप में भी जाना जाता है। इसका इतिहास काफी पुराना है। भागलपुर को (ईसा पूर्व 5वीं सदी) चंपावती के नाम से जाना जाता था। यह वह काल था जब गंगा के मैदानी क्षेत्रों में भारतीय सम्राटों का वर्चस्व बढ़ता जा रहा था। अंग 16 महाजनपदों में से एक था जिसकी राजधानी चंपावती थी। अंग महाजनपद को पुराने समय में मलिनी, चम्पापुरी, चम्पा मलिनी, कला मलिनी आदि आदि के नाम से जाना जाता था।
अथर्ववेद में अंग महाजनपद को अपवित्र माना जाता है, जबकि कर्ण पर्व में अंग को एक ऐसे प्रदेश के रूप में जाना जाता था जहां पत्नी और बच्चों को बेचा जाता है। वहीं दूसरी ओर महाभारत में अंग (चम्पा) को एक तीर्थस्थल के रूप में पेश किया गया है। इस ग्रंथ के अनुसार अंग राजवंश का संस्थापक राजकुमार अंग थे। जबकि रामयाण के अनुसार यह वह स्थान है जहां कामदेव ने अपने अंग को काटा था।
शुरुआत से ही अपने गौरवशाली इतिहास का बखान करने वाला भागलपुर आज कई बड़ों शहरों में से एक है तथा अब तो उसने अपना नाम समार्ट सिटी में भी दाखिल कर लिया है।
आज का साहेबगंज जिला,पाकुड़ जिला,दुमका जिला,गोड्डा जिला,देवघर जिला,जामताड़ा जिला( 15 नवम्बर 2000 ई॰ से ये सभी जिले अब झारखण्ड राज्य में है।) कभी भागलपुर जिला के सभ-डिवीज़न थे।जबकी देवघर जिला और जामताड़ा जिला बिहार के भागलपुर जिला और पश्चिम बंगाल के बिरभूम जिला से शेयर किए जाते थे।मुंगेर जिला(संयुक्त मुंगेर)और बाँका जिला भी पहले भागलपुर जिला में ही थे।ये दोनों ही जिले अब बिहार राज्य में हैं।
पुराणों के अनुसार भागलपुर का पौराणिक नाम भगदतपुरम् था जिसका अर्थ है वैसा जगह जो की भाग्यशाली हो।आज का भागलपुर जिला बिहार में पटना जिला के बाद दुसरे विकसित जिला के स्थान पर है तथा आस-पास के जिलों का मुख्य शहर भी भागलपुर जिला हीं है।यहाँ के लोग अंगिका भाषा का मुख्य रूप से इस्तमाल करते हैं तथा यहाँ के लोग अक्सर रुपया को टका(जो की बंगलादेश की मुद्रा है)कहकर संबोधित करते है। भागलपुर नगर के कुछ मुहल्लों के नाम की हकीकत – मोजाहिदपुर – इसका नाम 1576 ई बादशाह अकबर के एक मुलाज़िम मोजाहिद के नाम पर नामित हुआ था / सिकंदर पुर – बंगाल के सुल्तान सिकंदर के नाम पर यह मुहल्ला बसा । ततारपुर – अकबर काल मे एक कर्मचारी तातार खान के नाम पर इस मुहल्ले का नाम रखा गया । काजवली चक – यह मुहल्ला शाहजहाँ काल के मशहूर काज़ी काजी काजवली के नाम पर पड़ा । उनकी मज़ार भी इसी मुहल्ले मे है । कबीरपुर – अकबर के शासन काल मे फकीर शाह कबीर के नाम पर पड़ा ,उनकी कब्र भी इसी मुहल्ले मे है । नरगा – इसका पुराना नाम नौगजा था यानी एक बड़ी कब्र ।कहते हैं कि खिलजी काल मे हुये युद्ध के शहीदो को एक ही बड़े कब्र मे दफ़्नाया गया था । कालांतर नौ गजा नरगा के नाम से पुकारा जाने लगा । मंदरोजा – इस मुहल्ले का नाम मंदरोजा इस लिए पड़ा क्योंकि यहाँ शाह मदार का रोज़ा (मज़ार ) था जिसे बाद मे मदरोजा के नाम से जाना जाने ल्लगा । मंसूर गंज – कहते हैं कि अकबर के कार्यकाल मे शाह मंसूर की कटी उँगलियाँ जो युद्ध मे कटी थी , यहाँ दफनाई गई थी ,इस लिए इसका नाम मंसूरगंज हो गया ।
आदमपुर और खंजरपुर – अकबर के समय के दो भाई आदम बेग और खंजर बेग के नाम पर ये दोनों मुहल्ले रखे गए थे । मशाकचक – अकबर के काल के मशाक बेग एक पहुंचे महात्मा थे ,उनका मज़ार भी यही है इस लिए इस मुहल्ले का नाम मशाक चक पड़ा । हुसेना बाद,हुसैन गंज और मुगलपुरा – यह जहांगीर के समय बंगाल के गवर्नर इब्राहिम हुसैन के परिवार की जागीर थी ,उसी लिए उनके नाम पर ये मुहल्ले बस गए । बरहपुरा – सुल्तानपुर के 12 परिवार एक साथ आकर इस मुहल्ले मे बस गए थे ,इस लिए इसे बरहपुरा के नाम से जाना जाने लगा । फ़तेहपुर – 1576 ई मे शाहँशाह अकबर और दाऊद खान के बीच हुई लड़ाई मे अकबर की सेना को फ़तह मिली थी ,इस लिए इसका नाम फ़तेहपुर रख दिया गया था / सराय – यहाँ मुगल काल मे सरकारी कर्मचारिओ और आम रिआया के ठहरने का था ,इसी लिए इसे सराय नाम मिला । / सूजा गंज – यह मुहल्ला औरंगजेव के भाई शाह सूजा के नाम पर पड़ा है । यहाँ शाह सुजा की लड़की का मज़ार भी है उर्दू बाज़ार – उर्दू का अर्थ सेना होता है । इसी के नजदीक रकाबगंज है रेकाब का मानी घोड़सवार ऐसा बताया जाता है कि उर्दू बाज़ार और रेकाबगंज का क्षेत्र मुगल सेना के लिए सुरक्षित था । हुसेनपुर – इस मुहल्ले को दमडिया बाबा ने अपने महरूम पिता मखदूम सैयद हुसैन के नाम पर बसाया था । मुंदीचक – अकबर काल के ख्वाजा सैयद मोईनउद्दीन बलखी के नाम पर मोइनूद्दीनचक बसा था जो कालांतर मे मुंदीचक कहलाने लगा । खलीफाबाग- जमालउल्लाह एक विद्वान थे जो यहाँ रहते थे ,उन्हे खलीफा कह कर संबोधित किया जाता था । जहां वे रहते थे ,उस जगह को बागे खलीफा यानि खलीफा का बाग कहते थे । उनका मज़ार भी यहाँ है ।इस लिए यह जगह खलीफाबाग के नाम से जाना जाने लगा । आसानन्दपुर – यह भागलपुर स्टेशन से नाथनगर जाने के रास्ते मे हैं शाह शुजा के काल मे सैयद मुर्तजा शाह आनंद वार्शा के नाम पर यह मुहल्ला असानंदपुर पड़ गया ।
मंदार पहाड़ी
यह पहाड़ी भागलपुर से 48 किलोमीटर की दूरी पर है, जो अब बांका जिले में स्थित है। इसकी ऊंचाई 800 फीट है। इसके संबंध में कहा जाता है कि इसका प्रयोग सागर मंथन में किया गया था। किंवदंतियों के अनुसार इस पहाड़ी के चारों ओर अभी भी शेषनाग के चिन्ह को देखा जा सकता है, जिसको इसके चारों ओर बांधकर समुद्र मंथन किया गया था। कालिदास के कुमारसंभवम में पहाड़ी पर भगवान विष्णु के पदचिन्हों के बारे में बताया गया है। इस पहाड़ी पर हिन्दू देवी देवताओं का मंदिर भी स्थित है। यह भी माना जाता है कि जैन के 12वें तिर्थंकर ने इसी पहाड़ी पर निर्वाण को प्राप्त किया था। लेकिन मंदार पर्वत की सबसे बड़ी विशेषता इसकी चोटी पर स्थित झील है। इसको देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक आते हैं। पहाड़ी के ठीक नीचे एक पापहरनी तलाब है, इस तलाब के बीच में एक विश्नु मन्दिर इस द्रिश्य को रोमान्चक बानाता है। यहाँ जाने के लिये भागलपुर से बस और रेल कि सुविधा उप्लब्ध है।
विक्रशिला विश्वविद्यालय
मुख्य लेख: विक्रमशिला विश्वविद्यालय
विश्व प्रसिद्ध विक्रमशिला विश्वविद्यालय भागलपुर से 38 किलोमीटर दूर अन्तीचक गांव के पास है।
विक्रमशिला विश्वविद्यालय नालन्दा के समकक्ष माना जाता था। इसका निर्माण पाल वंश के शासक धर्मपाल (770-810 ईसा ) ने करवाया था। धर्मपाल ने यहां की दो चीजों से प्रभावित होकर इसका निर्माण कराया था। पहला, यह एक लोकप्रिय तांत्रिक केंद्र था जो कोसी और गंगा नदी से घिरा हुआ था। यहां मां काली और भगवान शिव का मंदिर भी स्थित है। दूसरा, यह स्थान उत्तरवाहिनी गंगा के समीप होने के कारण भी श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बना रहता है। एक शब्दों में कहा जाए तो यह एक प्रसिद्ध तीर्थस्थान था।
कहलगांव भागलपुर से 32 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां तीन छोटे-छोटे टापू हैं। कहा जाता है कि जाह्नु ऋषि के तप में गंगा की तीव्र धारा से यहीं पर व्यवधान पड़ा था। इससे क्रोधित होकर ऋषि ने गंगा को पी लिया। बाद में राजा भागीरथ के प्रार्थना के उपरांत उन्होंने गंगा को अपनी जांघ से निकाला। तत्पश्चात गंगा का नाम जाह्नवी कहलाया। बाद से गंगा की धाराएं बदल गई और यह दक्षिण से उत्तर की ओर गमन करने लगी। एक मात्र पत्थर पर बना हुआ मंदिर भी देखने लायक है। इस प्रकार का मंदिर बिहार में अन्यत्र नहीं है। कहलगांव में डॉल्फीन को भी देखा जा सकता है। यहाँ एन. टी. पी. सी. भी है।
इसके अलावा कुप्पा घाट, विषहरी स्थान, भागलपुर संग्रहालय, मनसा देवी का मंदिर, जैन मन्दिर, चम्पा, विसेशर स्थान, 25किलोमीटर दूर सुल्तानगंज आदि को देखा जा सकता है।
भागलपुर से 40 किमी की दुरी पर स्थित है। यहाँ आने की सुविधा सड़क मार्ग से है। यह भागलपुर से पूर्व -दक्षिण में स्थित है। यहाँ की मुख्य कृषि चावल की खेती होती है।
सुल्तानगंज से कहलगांव तक 50 किमी की दूरी को भागलपुर में डॉल्फ़िन का निवास माना जाता है। गंगा नदी डॉल्फिन भारत का राष्ट्रीय जलीय पशु है, और सरकार ने शहर में एक शोध केंद्र स्थापित करने की पहल की है। अंगिका भाषा में स्थानीय लोग इसे “सौंस” कहते हैं। डॉल्फ़िन घूमने और देखने का सबसे अच्छा समय सितंबर से फरवरी के बीच है।
बिहुला-बिषहरी
मध्यकालीन बंगाली साहित्य में, मनसमंगल मनसा और बिहुला की कहानी गाते हैं। अंगिका-भाषी क्षेत्र में मनसा को बिशारी और पद्मा के नाम से जाना जाता है। तेरहवीं से अठारहवीं शताब्दी के काल में इस कहानी पर आधारित अनेक कृतियाँ बनीं। इन कार्यों का धार्मिक उद्देश्य मनसा मनसा देवी के महत्व को प्रस्तुत करना था , लेकिन ये कार्य बेहुला (उपनाम बारी) और उनके पति लखंदर (लखींदर या लोखई, उपनाम बाला) के पवित्र प्रेम के लिए अधिक जाने जाते हैं। यह अंगदेश की राजधानी चंपानोगोरी (अब भागलपुर जिले में चंपानगर कहा जाता है ) से बिहुला-बिशारी की कहानी है) हालांकि, यह सिर्फ एक पौराणिक कहानी नहीं है, धातु के घर या “लोहा बशोर घोर” (अंगिका में ‘बशोर’ शब्द उस कमरे को संदर्भित करता है जहां दूल्हा और दुल्हन अपनी पहली शादी की रात एक साथ बिताते हैं) का प्रमाण भगवान विश्वकर्मा द्वारा बनाया गया है। चंद्रधर सौदागरी का अनुरोधबेहुला और उनके पति लखेंदर को सर्पदंश से बचाने के लिए अभी भी देखा जाता है और बताया जाता है कि जब क्षेत्र में भारी बारिश होती है। बहरहाल, मनसा इस क्षेत्र के प्रमुख देवता हैं और उन्हें “अंग की अधिष्ठात्री भगवती” के रूप में जाना जाता है। उन्हें सांप के काटने और जहर से बचाने वाली देवी के रूप में जाना जाता है। मनसा शिव की पुत्री है और कमल के फूल से पैदा हुई है, और इसलिए इसका नाम “पद्म या पदवती” रखा गया है। पांच मनसा बहनों का नाम कालानुक्रमिक रूप से जया बिशारी, दुतीला भवानी, पद्मा कुमारी, आदि कुस्मिन और मयना बिशारी के रूप में रखा गया है। मनसा बहनों के साथ, नेतुला धोबिन या नेताई धुबुनीपूजा वेदी में भी पूजा की जाती है। नेतुला या नेताई को बेहुला को स्वर्ग में ले जाने के लिए जाना जाता है और असम में धुबरी जिला अभी भी नेतुला के लोक गाती है, जहां वह देवी कामाख्या की उपासक थी। महाभारत में मनसा को “जरत्कारु” नाम दिया गया है और उसी नाम के संत की पूजा की जाती है और इस प्रकार इसे “जरत्कारु ऋषि पाटनी” के रूप में जाना जाता है। वह आस्तिक मुनि की माता हैं। भागलपुर शहर और इसके आसपास के इलाकों में देश में सबसे बड़ी मनसा पूजा मनाई जाती है। “बिशारी मेला” या स्थानीय मेला हर साल “16 से 19 अगस्त” तक श्रवण संक्रांति के सिंह नक्षत्र पर आयोजित किया जाता है। बेहुला के सम्मान में, स्थानीय लोग देवी को मंजूषा कला भेंट करते हैं, जो इस क्षेत्र की स्थानीय कला है, जिसे अपना जीआई टैग मिला है। मंजूषा कला पूरी तरह से बेहुला और मनसा की कहानियों पर आधारित है। इसके अलावा, स्थानीय लोग “बेहुला-बिशारी लोकगीत” गाते हैं और देवी की स्तुति करने के लिए “जात्रा या नाटक” (नाटक) करते हैं और उन्हें सम्मानित करने के लिए बेहुला के बलिदान का वर्णन करते हैं।
बुधनाथ मंदिर
तीन एकड़ में फैला बुद्धनाथ मंदिर उत्तरवाहिनी गंगा (दक्षिण से उत्तर की ओर बहने वाली) नदी के तट पर स्थित है। इस क्षेत्र के सबसे पुराने मंदिरों में से एक होने के कारण, यह पूरे वर्ष भक्तों की आमद का गवाह बनता है। यह मुख्य शहर से लगभग बीस मिनट की दूरी पर है। शिव पुराण में बाबा बुद्धनाथ का उल्लेख बाबा बाल वृद्धेश्वरनाथ के रूप में मिलता है। साथ ही यह नाम शिव पुराण के आठवें खंड के पहले खंड में बताया गया है । इस पूजा स्थल का लिंग स्वयं अवतरित है, फिर भी यह कब अस्तित्व में आया यह अभी भी अज्ञात है। शिवलिंग या लिंगम के बगल में मां भवानी की मूर्ति देखी जा सकती है ।

महर्षि मेही आश्रम
महर्षि मेही आश्रम, कुप्पाघाट, भागलपुर
महर्षि मेही आश्रम नदी के किनारे स्थित है। कुप्पाघाट, भागलपुर हजारों लोगों के लिए एक पवित्र आध्यात्मिक स्थान के रूप में विकसित हो गया है क्योंकि संत महर्षि ने भागलपुर में आंतरिक प्रकाश और ध्वनि पर गहन ध्यान में कई वर्ष बिताए हैं।

सेंट बेनेडिक्ट चर्च
गॉथिक वास्तुकला वाला चर्च शहर के केंद्र में स्थित है। इसने बेहतरीन वास्तुकला का उपयोग किया है और इस क्षेत्र के सबसे लोकप्रिय चर्चों में से एक के रूप में सामने आया है। चर्च का आंतरिक और बाहरी डिजाइन शाश्वत आनंद है। क्रिसमस और ईस्टर के दौरान, चर्च और पूरे कोर्ट क्षेत्र को रानी की तरह सजाया जाता है।
#विक्रमशिला गंगा डॉल्फिन अभयारण्य
#बटेश्वरनाथ महादेवी
#अजगैबीनाथ महादेवी
#जयप्रकाश उद्यान
महाशय देवरी
#तेतरी दुर्गा मंदिर
बहरामपुर दुर्गा मंदिर
जामा मस्जिद, चंपानगर