बेटी बन जो आई मैं इस दुनिया में

बेटी बन जो आई मैं इस दुनिया मेंऐसा लगा पराई हूं मैं अपने ही घर में।सबने नाक और मुंह क्या ख़ूब चढ़ाया,तरह-तरह के तानों का प्रसाद मुझे चखाया।।देखो कैसी बिगड़ी क़िस्मत हमनें ‌ है पाई,बेटी है हमारे घर पधारी।।भगवान् कैसा तूने ये खेल रचायागर्भ में ही क्यों न इसे मार गिरायागर्भ में जो ये जाती…

बरखा

बेटी बन जो आई मैं इस दुनिया में
ऐसा लगा पराई हूं मैं अपने ही घर में।
सबने नाक और मुंह क्या ख़ूब चढ़ाया,
तरह-तरह के तानों का प्रसाद मुझे चखाया।।
देखो कैसी बिगड़ी क़िस्मत हमनें ‌ है पाई,
बेटी है हमारे घर पधारी।।
भगवान् कैसा तूने ये खेल रचाया
गर्भ में ही क्यों न इसे मार गिराया
गर्भ में जो ये जाती मर,
आज हम सब चैन की नंद सोते जी भर कर।।
क्या ख़ूब इसने सबकी निंद उड़ाई
डॉक्टर ने जो इसके होने की ख़बर सुनाई।।
क्यूं इसपर इतना खर्चा करना,
जब इसको तो एक दिन पराये घर की है होना।।
पढ़ा लिखा कर इसको क्या है करना,
अंगुठा छाप ही इसको रहने दो ना।
पराये घर में आई हूं,
पराये घर में जाना है,
बेटी जो मुझे बनाया भगवान् ने
अपना न कोई ठिकाना है।।
फिर भी अपने आंसू को छुपाना,
दर्द को अपने अंदर समा,
ख़ुशी को गले लगाना है।।
और,एक संस्कारी बेटी, और, सुघड़ बहू का फ़र्ज़ निभाना है।।
बरखा

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