*पृथ्वी तेरे हाथ *

पृथ्वी तेरे हाथ में, रखो उसे सम्हाल।कर दो रोपण बीज का, तरुवर बने विशाल।। मिट्टी बाँधे वृक्ष ही, भू का रुके कटाव।तापमान हो संतुलित, इतना वृक्ष लगाव।। वर्षा होती वृक्ष से, बहती सुखद समीर।मत काटो इन वृक्ष को, घटता जाए नीर।। एक वृक्ष की सेविता, सौ सुत पुण्य समान।बनो उसी की सेविका, उद्यम करो प्रदान।।…

पृथ्वी तेरे हाथ में, रखो उसे सम्हाल।
कर दो रोपण बीज का, तरुवर बने विशाल।।

मिट्टी बाँधे वृक्ष ही, भू का रुके कटाव।
तापमान हो संतुलित, इतना वृक्ष लगाव।।

वर्षा होती वृक्ष से, बहती सुखद समीर।
मत काटो इन वृक्ष को, घटता जाए नीर।।

एक वृक्ष की सेविता, सौ सुत पुण्य समान।
बनो उसी की सेविका, उद्यम करो प्रदान।।

पेड़ काट सड़कें बनी, खेत पाट घर द्वार।
क्या खायेगा आदमी, कैसा यह व्यापार।।

सूख रही नदियाँ सभी, भू पर अम्बु अभाव।
भागे जंगल जीव भी, प्राणी में बिखराव।।

मानव तेरे हाथ में, है सारा संसार।
पादप की रक्षा करो, प्राणी से नित प्यार।।

द्रुम सेवा फलदायनी, देती शीतल छाँव।
आम नीम बरगद जहाँ, पीपल साजे गाँव।।

जंगल सारे जीव ही, धरती के संतान।
क्यूँ करते हो काटकर, बंजर भू अरमान।।

जंगल झाड़ी वृक्ष ही, पर्वत शिला पठार।
सब जीवों की सम्पदा, सबका है अधिकार।।

फिर करता है क्यूँ भला, उन पर कठिन प्रहार।
मानव तेरे हाथ में, भावी सुंदर संसार।।

जीवों में मनु श्रेष्ठ है, बुद्धि शक्ति जन साथ।
समझो रे उपयोगिता, दुनिया तेरे हाथ।।
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सरस्वती राजेश साहू 🙏🏻
रचना काल

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