ॐ
छंदशाला ३०
पुनीत छंद
(इससे पूर्व- सुगती/शुभगति, छवि/मधुभार, गंग, निधि, दीप, अहीर/अभीर, शिव, भव, तोमर, ताण्डव, लीला, नित, चंद्रमणि/उल्लाला, धरणी/चंडिका, कज्जल, सखी, विजाति, हाकलि, मानव, मधुमालती, सुलक्षण, मनमोहन, सरस, मनोरम, चौबोला, गोपी, जयकारी/चौपई, भुजंगिनी/गुपाल व उज्जवला छंद)
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विधान
प्रति पद १५ मात्रा, पदांत SSI ।
लक्षण छंद-
तिथि पुनीत पंद्रहवी खूब।
चाँद-चाँदनी सोहें खूब।।
गुरु गुरु लघु पद का हो अंत।
सरस सरल हो तो ही तंत।।
उदाहरण-
राजा नहीं, प्रजा का राज।
करता तंत्र लोक का काज।।
भूल न मालिक सच्चा- लोक।
सेवक है नहिं नेता- शोक।।
अफसर शोषण करता देख।
न्यायालय नहिं खींचे रेख।।
व्यापारी करता है लूट।
पत्रकारगण डाले फूट।।
सत्ता नहीं घटाती भाव।
जनता सहे घाव पर घाव।।
२-१०-२०२२