न काटो पंख मेरे,
भरने दो उड़ान मुझे खुले आसमान में ,
न करो पिंजरे में बंद मुझे
रहने दो उन्मुक्त भाव से इस जहान में ।
जन्म लिया जब एक ही माँ की कोख से ,
पली-बढ़ी एक ही परिवार में ,
फिर मुझे क्यों बांधा बंधन में ,
बापू मेरे बताओ क्यों आजादी नहीं बेटी के अधिकार में ?
हौसलों की कमी नहीं
हुनर भी बहुत है मुझमें ,
मौका देकर देखो तो जरा
नाम करूंगी रोशन मैं भी
बड़ी होकर अपने खानदान में।
मौलिक एवं स्वरचित
सरस्वती मल्लिक
मधुबनी, बिहार