मैं आजाद पंछी मुझे अब उड़ जाने दो,
न बनो रीती रिवाज की बेड़ियों से,
घर की चार दीवारों में न कैद करो,
पिंजरे में न रखो,अब मुझे उड़ जाने दो,
मैं आज़ाद पक्षी मुझे अब उड़ जाने दो।
कब तक सुनू आज्ञा मैं,
अब तो आदेश देने दो,
ज्योति बनकर कब तक रहूं,
अब ज्वाला बन दहकाने दो,
मैं आजाद पंछी मुझे उड़ जाने दो।
अबला बनकर बहुत सह लिया अत्याचार,
अब सबला बनकर आवाज उठाने दो।
सीता बन कब तक दूं अग्नि परीक्षा,
अब काली बनकर संहार करने दो,
मैं आजाद पंछी मुझे उड़ जाने दो।
फूल बन कब तक महकू,
अब कांटे बन जीने दो,
अहिल्या बनकर क्यों सहू लांछन
अब झांसी की रानी बन जाने दो।
मैं आजाद पंछी मुझे उड़ जाने दो,
कब तक अपमान करते रहोगे,
अब तो खुले आसमान में उड़ जाने दो।
राधा बन मैं कब तक रोऊं,
अब तो चैन से जीने दो,
मैं आजाद पंछी मुझे अब उड़ जाने दो।
कब तक चौंका बर्तन करूं
अब तो शिक्षा का अधिकार दो,
दुर्गा , काली,सीता, लक्ष्मी, सरस्वती
आदि नाम देकर न पुजो मुझे
मैं नारी हूं,मूझे नारी ही रहने दो।
मैं आजाद पंछी मुझे अब उड़ जाने दो,
घुट-घुट कर कब तक जीऊं
अब तो स्वाभिमान से जीने दो,
सब बंधन मुझपर ही क्यों?
बेटा बेटी में अन्तर ही क्यों?
बेटी बनकर कब तक रहूं,
कभी बेटा समझकर जीने दो।
मैं आजाद पंछी मुझे अब उड़ जाने दो..
निर्भया बन बहुत सहा अत्याचार
अब दामिनी बन गरजने दो
बस और नहीं सहना
अब तो आत्मसम्मान से जीने दो..
मैं आजाद पंछी मुझे अब उड़ जाने दो…..
कुमारी गुड़िया गौतम
(जलगांव)