नख शिख वर्णन

एक रुपसि है अति सुन्दर ,विधि ने उसे सजाया है ,सर से लेकर पांव के नख तक ,फुर्सत मे ही बनाया है । चढती उमर है उसकी भैया ,और मदहोश जवानी है,अंग,अंग उसके अति सुन्दर ,और चेहरे पर पानी है । गौर वर्ण की वह बाला है,चंद्रमुखी कहलाती है ,नहीं कोई धब्बा है मुख पर,रूप…

डा उमेश नंदन सिन्हा

एक रुपसि है अति सुन्दर ,
विधि ने उसे सजाया है ,
सर से लेकर पांव के नख तक ,
फुर्सत मे ही बनाया है ।

चढती उमर है उसकी भैया ,
और मदहोश जवानी है,
अंग,अंग उसके अति सुन्दर ,
और चेहरे पर पानी है ।

गौर वर्ण की वह बाला है,
चंद्रमुखी कहलाती है ,
नहीं कोई धब्बा है मुख पर,
रूप सुधा बरसाती है।

शिख से लेकर पांव के नखतक ,
अंग ,अंग मनमोहक हैं ,
और मेनका से भी बढकर ,
हाव -भाव उत्तेजक हैं ।

शिख पर अलक अरे जो शोभित ,
अहि सदृश घुंघराले हैं ,
चंद्रमुखी के रूप के रस को ,
वे तो पीने वाले हैं ।

दीपित भाल अरे जो उसका ,
वह भी खूब दमकता है ,
प्रत्यंचा सी भौहों से भी ,
रूप का वाण निकलता है ।

घायल वह कर देता उनको ,
रूप आराधक जितने हैं ,
मंत्रमुग्ध कर देता उनको ,
भावुक जन यहां जितने हैं ।

मृग की आंखो से भी बढकर ,
सुन्दर सुन्दर आंखें हैं,
खंजन सी फुदका करती वे ,
सुन्दर सुन्दर पांखे हैं ।

लम्बी ,नुकीली उसकी नासिका ,
अनुपम शोभा वाली है ,
तन को ,मन को और हृदय को ,
जीवन देने वाली है।

लाल लाल रस प्लावित अधरें ,
रूप सुधा बरसाते हैं ,
भावुक जन यहाँ जितने उनके ,
मन को तृप्त कर जाते हैं ।

लाल लाल जो दो कपोल हैं ,
अति मनमोहक लगते हैं ,
प्रेमी जन यहाँ जितने उनको ,
आकर्षित कर लेते हैं ।

दांतो की दो धवल पंक्तियां ,
अनुपम शोभा बरसाती हैं ,
हंसती है जब भी वो रूपसि ,
मन को तृप्त कर जाती है ।

ग्रीवा जो है पतली ,लम्बी
सच में सुन्दर लगती है
सत्य कहूं वो पूरे मुख की
शोभा द्विगुणित करती है ।

पुष्ट पुष्ट उसके दो कन्धे ,
अनुपम शोभा देते हैं ,
अमृत कलश दो उनके नीचे ,
मन को मुग्ध कर लेते हैं ।

उनके मध्य जो तंग गली है ,
आंखो को खींच ही लेती है ,
आंखों के संग तृषित जो मन है
उसे तृप्त कर देती है ।

सुघड,सुकोमल पेट अरे जो ,
वह अति सुन्दर दिखता है ,
झिल मिल कपडों में लुक छिपकर
अद्भुत रूप विहंसता है ।

उसके नीचे कटि जो पतली ,
केहरि कटि सी लगती है ,
और कटि में बंधी करधनी ,
शोभा द्विगुणित करती है ।

पुष्ट ,पुष्ट दो गौर वर्ण की ,
जांघे उसकी सुंदर हैं ,
बहुत सुकोमल ,अति मनमोहक
सुन्दर से भी सुन्दर है ।

पांव अरे उसके सुंदर हैं ,
नख तक सारे सुन्दर हैं ,
शिख से लेकर नख तक लगती ,
विधि की कृति मनोहर है ।

गज सी चाल अरे मनमोहक ,
मनभावन अति लगती है ,
सच में वह गजगामिनी भैया ,
नयन तृप्त कर देती है ।

क्या क्या कहूं ,कहूं मैं क्या क्या ,
शब्द कहां कुछ मिलते हैं ,
किस से करूं मैं तुलना उसकी ,
पात्र कहां अभी मिलते हैं ।

रूप की रानी नहीं अरे वह,
वह तो सच मे महारानी है ,
शिख से लेकर नख तक उसके ,
सब पर चढ़ी जवानी है।

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