दोहा-साथी

| सुख में साथी सब बने,दुख में बने न कोय|जो दुख में साथी बने ,मानों भगवन होय|| आज जमाना है यही,स्वारथ के सब मीत|जब स्वारथ सिद्धी मिले,छोंड दिए वह प्रीत|| नहीं सुदामा,कृष्ण हैं,नहीं बालि सुग्रीव|नहीं द्रोपदी नारि है,नहीं पाँडु बलसीव||सच्ची -साथी जगत में,इक पत्नी है यार|सुख -दुख में साथी वही,करे विघ्न निरुआर|| कलयुग के कलिकाल…

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सुख में साथी सब बने,
दुख में बने न कोय|
जो दुख में साथी बने ,
मानों भगवन होय||

आज जमाना है यही,
स्वारथ के सब मीत|
जब स्वारथ सिद्धी मिले,
छोंड दिए वह प्रीत||

नहीं सुदामा,कृष्ण हैं,
नहीं बालि सुग्रीव|
नहीं द्रोपदी नारि है,
नहीं पाँडु बलसीव||
सच्ची -साथी जगत में,
इक पत्नी है यार|
सुख -दुख में साथी वही,
करे विघ्न निरुआर||

कलयुग के कलिकाल में,
यदा कदा तुम छोड़|
पति -पत्नी भी भ्रष्ट है,
लगे पता दुख मोड़||

अमरनाथ सोनी “अमर “

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