दुर्लभ मानव जन्म मिला हैं,
पुण्य संचय प्रताप खिला हैं,
भवोभव के तोल-मोल से,
जीवन सुख, आनंद मिला हैं।।
सदाचार से जीवन बाग महकाये,
सद्भावना सुरभित पुष्प खिलाये,
शीतल सत्धर्म पवन उन्मुक्त लहरें,
जीवन सत्कर्म बंदनवार सजायें।।
कामादिक क्रोधाग्नि, लोभ दावानल,
ईष्र्या, द्वेष, मिथ्या अहंकार मिटा दे,
दुराचारी, भ्रष्टाचारी, दंभी न बने दुर्जन,
संस्कारी, सुसंस्कृत, सज्जन बनें हम।।
दया, क्षमा, करुणा, प्रेमभाव खिलाये,
जीवदया, सेवाधर्म, करुणा अपनाये,
अनाथ, अकेला, बेघर न रहें कोई,
परोपकार से आनंद-पल सजा दे।।
दुर्लभ प्रभु परमात्मा कृपा पाना,
जैसे सीप में मोती दुर्लभ मिल जाना,
क्यों कस्तूरी खोजे मृग-सा यहां वहां,
प्रभु परमात्मा का अंतर्मन में बसेरा।।
दीन-दुखियों की सेवा में बीते जिंदगानी,
भूखे को निवाला, प्यासे को पानी,
बेघर को मिले छत, छोटासा आशियाना,
मानव जन्म सत्कर्मो से सफल बनाना।।
स्वरचित मौलिक रचना
चंचल जैन
मुंबई