हमें एक ही बार में मात दे गई।
नीली आँखे वाली वार कर गई।
बड़ी चालाकीयों से होंठो की
ज़ुबानी इशारों से समजा गई।
एक ही मुलाकात में हमें हमारी
ज़िंदगी को जन्नती बना गई।
मुझ जैसे से भटकते मुसाफ़िर
को मंज़िल का पता बता गई।
गले से हिचकियों को निकाल
कर हमें अपना नाम दे गई।
हमारी कविताओं के भावों को
वो अपना सार बता गई।
सवाल हम पूछें इसके पहले ही
वो अपना जवाब हाँ में बता गई।
नीक राजपूत
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