जब माँ की कोख में उसका अंश पलता है

जब माँ की कोख में उसका अंश पलता है ,माँ का तन ,मन ,रोम- रोम पिघलता हैकष्ट पीड़ा चुभन से तिलमिलाती है ,मगर सन्तान के लिए सब कुछ सह जाती है । नो माह की वेदना का एक एक पल भारी हैएक माँ ही है जिसने नो माह ये राते गुजारी है ।असहनीय दर्द को…

जब माँ की कोख में उसका अंश पलता है ,
माँ का तन ,मन ,रोम- रोम पिघलता है
कष्ट पीड़ा चुभन से तिलमिलाती है ,
मगर सन्तान के लिए सब कुछ सह जाती है ।

नो माह की वेदना का एक एक पल भारी है
एक माँ ही है जिसने नो माह ये राते गुजारी है ।
असहनीय दर्द को भी सहन कर जाती है
सन्तान के जन्म पर माँ दर्द भी में भी मुस्काती है

फूलो की सेज से भी कोमल माँ की ममता है
माँ के ह्रदय में हर दुख सहने की क्षमता है
उस नन्ही छवि को देख देख मुस्काती है
मन ही मन बस ख्वाब सुहाने सजाती है ।

रातो की नींद दिन का चैन खो देती है
कभी खुशी कभी गम में रो देती है ।
बिलख उठती है जब सन्तान भूख से ,
माँ रात भर जाग अमृत पान कराती है ।

माँ माखन ,माँ मिश्री, माँ मलाई है
माँ के आंचल में सारी दुनिया समाई है
माँ की ममता से बड़ी कोई ममता नही होती
एक माँ ही है जो कभी बद दुआ नही होती ।।

संदीप कुमार जैन
टोंक , राजस्थान

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