चाय तो एक बहाना है,
मुझे तो तुमसे सुबह में रोज़ मिलना है।
चाय जब तुम स्वादिष्ट मेरे लिए बनाती हो,
दिल को कितना सुकुन मिलता है।
चेहरा जब देखता हूं तुम्हारी,
मुझे तो चाय में बस तेरी ही सूरत दिखती है।
तेरे हाथों में क्या जादू है,
जो इतनी स्वादिष्ट चाय होती है।
आज़ भी तेरे इंतज़ार में बैठा हूं,
अब तक तुम पास क्यों नहीं आती हो?
स्वरचित एवं मौलिक रचना
प्रकाश राय ✍️
समस्तीपुर, बिहार