चन्द्रहास लेकर करो में,
चन्द्र रवि वार करदो,
श्रृष्टि का घनघोर अंधेरा,
प्रकाश मय इकबार करदो,
हर्ष औ उल्लास नेत्र से,
सर्वदा सर्वत्र लुप्त हो गये हैं,
वैरी के मनोभावों को,
विकराल विकट हो प्रकट नष्ट,
वैरी का तुम बार बार,
चन्द्र रवि हर वार करदो।
चन्द्रहास लेकर करो में,चन्द्र रवि वार करदो, श्रृष्टि का घनघोर अंधेरा,प्रकाश मय इकबार करदो, हर्ष औ उल्लास नेत्र से,सर्वदा सर्वत्र लुप्त हो गये हैं, वैरी के मनोभावों को,विकराल विकट हो प्रकट नष्ट, वैरी का तुम बार बार,चन्द्र रवि हर वार करदो।