गीत

मापनी16,16 धन तो मैंने खूब कमाया,दामन खुशियों से खाली है।सहसा ही जब निद्रा टूटी,लगा साँझ होने वाली है।। बचपन बीता यौवन बीता,देख बुढ़ापा मन घबराया।कंकड़ पत्थर खूब बटोरा,असली हीरे को ठुकराया।नहीं रौशनी की किरणें हैं,रात अमावस सी काली है।सहसा ही जब निद्रा टूटी,लगा साँझ होने वाली है।।1।। जिसको अपना माना हमने,दुख में उसने ही ठुकराया।सोने…

प्यारेलाल साहू मरौद

मापनी16,16

धन तो मैंने खूब कमाया,
दामन खुशियों से खाली है।
सहसा ही जब निद्रा टूटी,
लगा साँझ होने वाली है।।

बचपन बीता यौवन बीता,
देख बुढ़ापा मन घबराया।
कंकड़ पत्थर खूब बटोरा,
असली हीरे को ठुकराया।
नहीं रौशनी की किरणें हैं,
रात अमावस सी काली है।
सहसा ही जब निद्रा टूटी,
लगा साँझ होने वाली है।।1।।

जिसको अपना माना हमने,
दुख में उसने ही ठुकराया।
सोने चाँदी हीरे मोती,
अंत समय कुछ काम न आया।
नाच नचाती माया सबको,
नहीं कहीं खुशहाली है।
सहसा ही जब निद्रा टूटी,
लगा साँझ होने वाली है।।2।।

प्यारेलाल साहू मरौद छत्तीसगढ़

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